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पर्यावरण को सबसे बड़ा खतरा वनोन्मूलन से



 05/Jun/21

पर्यावरण सम्बंधित स्वास्थ्य के खतरों को रोकने के लिए प्रतिदिन विश्व पर्यावरण दिवस मनाए, और हर माह एक पौधा अवश्य लगाएडॉ. एस.के पाठक

 

ब्रेथ ईजी टी.बी, चेस्ट, एलर्जी केयर अस्पताल अस्सी वाराणसी द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस के उपलक्ष पर आयोजित एक पेशेंट एजुकेशन प्रोग्राममें डॉ. एस.के पाठक (वरिष्ठ टी.बी, एलर्जी, फेफड़ा रोग विशेषज्ञ) ने फेसबुक लाइव के मध्यम से लोगो को जागरूक किया I डॉ. पाठक ने बताया पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति अधिक से अधिक लोग जागरुक हों, इस उद्देश्य को लेकर ही सन् 1974 से प्रतिवर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। वैसे देखा जाए तो पर्यावरण के प्रति सचेत होने की सीख पूरे विश्व को साल 2020 से कोरोना महामारी के प्रकोप से अच्छे से मिल गई है। लोग कोरोना महामारी के कारण अपने आसपास के वातावरण और स्वयं को साफ रखने के प्रति जागरुक हुए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा 11 मार्च 2020 को घोषित वैश्विक महामारी कोरोना ने दुनिया के अरबों लोगों को मृत्यु की नींद सुला दिया हैं, बच्चों को अनाथ कर दिया हैं, दुनिया की अर्थव्यवस्था चरमरा दी है। कोरोना महामारी को रोकने के लिए दुनिया के देशों ने अपने अपने तरीके से संपूर्ण लॉकडाउन जैसे कुछ सफल और रक्षात्मक उपाय अपनाए, जिनके प्रभाव पर्यावरण को स्वच्छ बनाने में दिखाई दिए हैं।

डॉ पाठक ने आगे बताया कि – “जैसे-जैसे शहर विकसित हो रहे हैं, हरियाली कम और कंक्रीट के जंगल बढ़ते जा रहे हैं। हर साल प्रदूषण के मामले में बढ़ोतरी हो रही है। यदि हम अभी से नहीं चेते तो आने वाले कुछ सालों में साफ हवा में सांस लेने के लिए सिर्फ पहाड़ और जंगल ही बचे रह जाएंगे। प्रदूषण लगातार हमारी सांसें कम कर रहा है। नए पैदा होने वाले कई बच्चों पर इसका असर भी दिख रहा है। आज विश्व पर्यावरण दिवस है, ऐसे मौके पर हम सभी को कोई ऐसा प्रण लेना चाहिए जो आने वाली पीढ़ियों को साफ सुथरी हवा देने में मददगार हो सके।

डॉ. पाठक ने आगे बताया कि अगर दुनिया में तेजी से फैलते प्रदूषण पर काबू नहीं किया जो वह दिन दूर नहीं जब हमारा सांस लेना दूभर हो जाएगा। डॉ पाठक ने मरीजों को आगे बताया कि – “पर्यावरण को सबसे बड़ा खतरा वनोन्मूलन से हैं जिसकी वजह से प्रदुषण अपने चरम सीमा पर हैं, इससे न सिर्फ एलर्जी के मरीजों को अपितु साधारण आदमी को भी खतरा हैं I डॉ पाठक ने मरीजों को बताया कि –“प्रदूषित हवा के चलते भारत में हर साल छः लाख, जबकि दुनियाभर में साठ लाख लोगों की जान जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के एक रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र में वायु प्रदूषण की वजह से हर साल आठ लाख मौतें हो रही हैं, इनमें से 75 फीसद से अधिक मौतें भारत में हो रही हैं। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2 लाख 49 हजार 388 मौतें हृदय रोग से, एक लाख 10 हजार 334 मौतें हार्ट अटैक से एक लाख 95 हजार मौतें फेफड़ों की बिमारी से और 26 हजार 334 मौतें फेफड़ों के कैंसर से हुई है।

ब्रेथ ईजी के निदेशक डॉ एस.के पाठक ने बताया कि ब्रेथ ईजी जन जागरूकता के लिए समय-समय पर जागरूकता अभियान चलाता रहता हैं जिसमे नि:शुल्क स्वास्थ्य शिविर, नि:शुल्क क्लिनिक, नि:शुल्क जन जागरूकता रैली, नि:शुल्क मोबाइल कैंप प्रमुख हैं I


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