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जीआई उत्पादों के निर्यात में वृद्धि : अशोक कुमार गुप्ता



 28/Jul/21

वाराणसी जीआई उत्पादों का केंद्र है जहां सबसे ज्यादा उत्पाद जीआई द्वारा पंजीकृत है जहां बिना किसी सरकारी प्रोत्साहन के जीआई पंजीकृत हस्त निर्मित कांच के मोती 10.67 करोड़, लकड़ी के मोती 60.76 लाख, सॉफ्ट स्टोन के आर्टिस्टिक मोती 12.28 लाख और 4.71 लाख के टेरीकोटा के मोतियों का निर्यात किया। वही अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक ने बताया कि भारत कांच की मोतियों का पिछले दशक तक निर्यातक था एवं भारत वर्ष से जितना निर्यात होता था उससे ज्यादा कांच की मोतियों की खपत जपने की माला, मंगलसूत्र इत्यादि में होता था निर्यात से 100 गुना माल घरेलू बाजार में बिक जाता था। दुर्भाग्य से चीन से प्रतिस्पर्धा में भारत में ही भारत की बनी कांच की मोतियों का कारोबार शून्य हो गया क्योंकी भारत में मोतियों के कारोबार में चीन का अधिपत्य हो गया। पिछले तीन वर्षो के आकंड़ो के अनुसार भारत में चीन से औसतन 24 अरब रुपए का औसत 30 हजार टन कांच की मोतियों का विदेशी मुद्रा में आयात हुआ जो लगभग 85 प्रतिशत है और इस पर  24 अरब विदेशी मुद्रा प्रतिवर्ष खर्च होती है। उन्होंने कहा कि फिर भी समझ नहीं आता कि सरकारें अपना राजस्व क्यों नहीं बढ़ाना चाहती। वही इन्ही हालातो के कारण कम से कम 20 पंजीकृत व्यापारियों और उद्योगों ने कार्य बंद कर दिया और 10 हजार से ज्यादा कारीगर बेकार हो गए।

अशोक कुमार गुप्ता ने कहा कि पिछले कई वर्षो से यहां के उद्यमी और उनके संगठनो द्वारा पिछले 5 वर्षो से सरकार से गुहार लगाती आ रही है कि वर्तमान में भारत में कांच के मोती पर आयात शुल्क 20 प्रतिशत है जिसे बढाकर 45 प्रतिशत कर दिया जाए तो लगभग 2.25 अरब रुपए की अतिरिक्त सीमा शुल्क मिलेगा। उन्होंने  कहा कि हमारा सुझाव है कि केंद्र और राज्य सरकारें  जीआई उत्पादों को निर्यात के लिए प्रोत्साहित करे और स्थानीय उद्योगों को बचाते हुए अपने राजस्व में इजाफा करें जिससे मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत के साथ स्वराज भारत का सपना साकार हो सकें। उन्होंने आगे कहा कि हमें लगता है कि हमारे मुख्यमंत्री व प्रधानमंत्री की नजर नहीं पड़ी है और यदि इस पर आयात शुल्क में वृद्धि हो तो भारत सरकार राजस्व बढ़ जाएगा और उत्तर प्रदेश में कम से कम दस हजार लोगो को रोजगार मिल सकता है ।


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