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नहीं रहे कथक सम्राट पं. बिरजू महाराज



 17/Jan/22

पद्म अलंकारों से सम्मानित कथक सम्राट पं. बिरजू महाराज का निधन रविवार देर रात दिल्‍ली में हो गया और इसी के साथ सांस्‍कृतिक संगीत के एक युग का अंत हो गया। उनके निधन की सूचना सुनते ही पूरे भारत देश के साथ ही बनारस में संगीत प्रेमियों में शोक की लहर दौड़ गई। धर्म-अध्यात्म, नृत्य एवं संगीत की नगरी काशी से उनका गहरा लगाव था। पिछले साल (2020) में वह संकट मोचन संगीत समारोह में आए थे तो उम्र की थकान के बावजूद चेहरे के विविध भावों और हाथों की अनूठी मुद्राओं की जीवंत प्रस्तुतियों से अपने प्रशंसकों को रिझा कर मंच पर छाए रहे। संकट मोचन मंदिर में कई बार ऐसा दृश्य आया है की सामने किशन महाराज, पंडित जसराज और राजन-साजन मिश्र और पूर्व महंत स्वर्गीय वीरभद्र मिश्र कथक सम्राट बिरजू महाराज के नृत्य कौशल को देखने के लिए बैठे रहते थे।

कथक नृत्य सम्राट पद्मविभूषण पं. बिरजू महाराज ने जिंदगी की तुलना नृत्य की लय से की थी। उन्होंने कहा था कि पैरों में बंधे घुंघरुओं में से ही झंकृत स्वर नहीं निकलते। ताल पर कथक में ही लय नहीं होती, हर एक ही धड़कन में लय है। जिंदगी की उस लय को जानने, समझने की जरूरत है। उन्होंने कहा था कि शास्त्रीय संगीत ईश्वर से मिलन का मार्ग है। लय, सुर, ताल के जरिए आसानी से परमात्मा का साक्षात्कार किया जा सकता है। इसलिए जीवन में संगीत का होना जरूरी है।

बिरजू महाराज ने शास्त्रीय संगीत में कथक को ऊंचाई देने का काम किया। बनारस और यहां के मंदिर से उन्‍हें बहुत लगाव था। उन्‍होंने कहा था जबतक स्वास्थ्य साथ देगा मंदिर आते रहेंगे। संकट मोचन संगीत समारोह में आते थे तो कम से कम एक सप्ताह रुकते थे। किशन महाराज से बहुत घनिष्ठता थी। किशन महाराज और बिरजू महाराज की जोड़ी बहुत प्रसिद्ध थी।
रविशंकर जी द्वारा शुरू किए रिंपा संगीत महोत्सव और बनारस के ललित संस्थान में इनकी जुगलबंदी आज भी लोगों को याद है। बतख और बतखी के प्रेम प्रसंग को कथक प्रस्तुति में जीवंत करते थे। उनकी वो प्रस्तुति आज भी लोगों के जेहन में है। पंडित बिरजू महाराज जितने कुशल कथक में थे उतने ही कुशल तबला वादन और ठुमरी गायकी में भी थे। वे गोविंदा और माधुरी दीक्षित के नृत्य को पसंद करते थे।


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