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राजनाथ तिवारी हराएंगे काशी पत्रकार संघ के अध्यक्ष सुभाष सिंह को

अशोक कुमार मिश्र
प्रधान संपादक
 02/Feb/19

वरिष्ठ पत्रकार विनय सिंह व क्रांतिकारी मनोज इस बार हराएंगे महामंत्री कथित डॉक्टर अत्रि को

पत्रकार संघ के नाम पर पत्रकारपुरम की जमीन कौड़ियों में खरीद कर करोड़ो  में बेचने वाले संघ का पूर्व अध्यक्ष बीबी यादव फिर अध्यक्ष बनने का देख रहे हैं ख्वाब।

पत्रकारों की प्रतिष्ठित संस्थान काशी पत्रकार संघ में इन दिनों चुनाव को लेकर घमासान मचा हुआ है। इस बार के चुनाव में जहां एक ओर अध्यक्ष पद के लिए राजनाथ तिवारी मजबूती से चुनावी मैदान में हैं वहीं दूसरी ओर सुभाष सिंह और बीबी यादव के बीच आपस में ही लड़ाई फंसी हुई है| वहीं दूसरी ओर महामंत्री पद पर भी वरिष्ठ पत्रकार विनय सिंह, क्रांतिकारी पत्रकार मनोज श्रीवास्तव और कथित डॉ. अत्रि भारद्वाज के बीच घमासान है।

मजे की बात है कि काशी पत्रकार संघ में वही पत्रकार चुनाव लड़ता है, जिसे या तो समाचार पत्र से हमेशा के लिए निकाल दिया गया हो, अथवा जो रिटायर हो चुका है। बनारस के जागरण और आईनेस्ट के सभी पत्रकार साथियों ने वर्षों पहले सामूहिक रूप से स्तीफा दे दिया है। हिंदुस्तान, अमर उजाला, सहारा जैसे बड़े अखबारों का कोई पत्रकार फिलहाल चुनाव लड़ता ही नहीं। जिनके पास कोई काम नहीं है वही पत्रकार संघ की राजनीति में दिलचस्पी दिखाते हैं।

आइए हम बात करते हैं संघ के वर्तमान अध्यक्ष सुभाष सिंह के 2 वर्षों  के कार्यकाल की। इनके 2 वर्षों के कार्यकाल में पराड़कर जी के नाम पर उनके गांव मुम्बई की यात्रा किया और हजारों उड़ाया | इससे किसी पत्रकार का कोई भला नहीं हुआ। एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि बैठे -बैठाए प्रचारित करते फिर रहे हैं कि कमलापति फाउंडेशन के नाम पर संघ में उनके पौत्र राजेशपति त्रिपाठी की पहल पर जो कुछ हो रहा है वह इन्हीं की देन है। सच्चाई है कि राजेशपति जी अपने दादाजी के नाम को संघ में स्थापित कर पत्रकारों के बीच राजनैतिक रूप से बड़ा संदेश देंना चाहते हैं। इसका श्रेय लेने में जुटे वर्तमान अध्यक्ष सुभाष सिंह आज अखबार में महज 5 हजार की नौकरी करने वाले फिलहाल उसी अखबार उनका कोई वजूद नहीं है। वर्षों से अखबार बिछाकर सोने वाले सेवानिवृत्त होने के बाद अपना दिन काट रहे हैं सुभाष ने पत्रकार हितों के लिए भले ही कोई लड़ाई नहीं लड़े हैं, फिर भी अपने पेट की लड़ाई के लिए ज्ञानशिखा टाइम्स और सिंह मेडिकल के द्वारा प्रकाशित भोजपुरी अखबार “आपन माटी आपन बात” से चंद रुपयों के लालच में घूम टहल कर नौकरी बजाते रहे। बताते चलें आज अखबार में प्रति महीनें 5 हजार रुपये महीना पाने वाले श्री सुभाष ने अखबार को बहुत कुछ दिया है| खासकर विभिन्न चुनाव के दौरार नेताओं से खबर और विज्ञापन के नाम पर लखों की वसूली किया संस्थान का भी भला किया और बदले में कमीशन खाया। यही कारण रहा कि सुभाष की पहचान उनके अखबार में पत्रकार से अधिक विज्ञापन प्रतिनिधि की रही है। विज्ञापन की आड़ में क्या करते थे, अगर जानना है तो कांग्रेस के नेता शेख शमीम के चुनाव में विज्ञापन के नाम पर मिलन से कितना रूपया लेते थे और क्या करते थे, सभी को पता है| फिलहाल उनके पास कोई काम नहीं बचा तो पत्रकार संघ के नाम पर अध्यक्ष जैसी कुर्सी पाने के बाद उपजा के अध्यक्ष डॉ. अरविंद सिंह के पीछलग्गु बनकर 2 वर्षों  में न जाने पत्रकारों का कितना भला किया यह तो वे ही जाने। आज अखबार के चीफ रिपोर्टर दीनबंधु राय की मानें तो क्या जरूरी है कि हर साल यही अध्यक्ष का चुनाव वही क्यों लड़ेंगे और इन्होंने पत्रकारों के लिए किया ही क्या। आज अखबार से 2- 4 वोट से अधिक मिलने वाला नहीं है।

सबसे महत्वपूर्ण बात समाचार पत्र कर्मचारी यूनियन के मंत्री अजय मुखर्जी की मने तो सुभाष सिंह की गिनती मालिकों का पिछलग्गु बनने वालों में है। पत्रकार हितों से उनका कोई लेना देना नहीं है। उनके लिए अपना हित सर्वोपरि है। इस बार के चुनाव में इनके सबसे प्रबल विरोधी आज अखबार के कर्मचारी और पत्रकार संघ की राजनीति में किंग मेकर की भूमिका निभाने वाले विकास पाठक व प्रदीप कुमार, संजय अस्थाना हैं| कर्मचारी नेता अजय मुखर्जी के चेला योगेश गुप्ता पप्पू ने संघ की शाख को मिट्टी में मिलाने के बाद इन दिनों ऐसे गायब हुए हैं जैसे गधे के सर से सिंघ। अब तो काशीवार्ता  और जनवार्ता के स्वजातीय वोटों के भरोसे श्री सुभाष चुनावी मैदान में दूसरी बार अध्यक्ष बनने का सपना संजोए हैं, जिसे चकनाचूर करने में राजनाथ तिवारी अहम भूमिका अदा करने वाले हैं। पत्रकार साथियों को सुभाष सिंह के कार्यकाल की मानवता को शर्मसार करने वाली घटना हमेशा याद रहेगी जब फोटो पत्रकारिता के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान रखने वाले दैनिक जागरण के प्रेस फोटोग्राफर विजय सिंह “सफेद बाल वाले” को दो जून की रोटी और दवा के लिए तड़पाया गया और संघ का कोई पदाधिकारी उनके यहाँ झांकने तक नहीं गया, जबकि 26 जनवरी के नाम पर लाखों रुपए भोज पार्टी के नाम पर खर्च करके इन पदाधिकारियों किसका भला किया।

वाराणसी प्रेस क्लब के महामंत्री अशोक मिश्र की पहल पर संघ के सदस्य विजय सिंह की हुई लाखों की मदद

बताते चलें कि जब दैनिक जागरण के बीमार प्रेस फोटोग्राफर विजय सिंह अपने टूटे. फूटे घर में दो जून की रोटी और दवा के लिए तड़प रहे थे तो वाराणसी प्रेस क्लब के महामंत्री अशोक कुमार मिश्र की पहल और क्लाउन टाइम्स की खबर का असर रहा कि विजय सिंह की मदत के लिए दर्जन हाथ उठे और लाखों की मदद हुई। आज भी उपजा के अध्यक्ष डॉ. अरविंद सिंह की जितनी भी तारीफ की जाए कम है कि वाराणसी प्रेस क्लब के महामंत्री अशोक कुमार मिश्र की पहल पर आगे आये और विजय सिंह के पूरे एक वर्ष के खाने और जरूरी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए रु.4000 प्रतिमाह वाराणसी प्रेस क्लब के माध्यम से भिजवा रहे हैं। विजय सिंह पत्रकार संघ के सम्मानित सदस्य हैं, इसलिए इसबार के चुनाव में सुभाष और कथित डॉ. अत्रि की जोड़ी को प्रेस फोटोग्राफरों के गुस्से का भी शिकार होना पड़ेगा। प्रेस फोटोग्राफरों की माने तो इन दोनों पदाधिकारियों को इसबार हराना जरूरी है।

मानवता को शर्मसार करने वाले दोनों पदाधिकारियों की शहर के दिग्गज पत्रकारों से अपील है इस बार भी उन्हें ही  दोबारा अध्यक्ष और महामंत्री बनाए ताकि जो रही- सही कसर बाकी है उसे पूरा कर दें। सुभाष सिंह को शायद यह नहीं पता है कि उनकी पहचान कलम के सिपाही और स्थापित पत्रकार के रूप में नहीं है, बल्कि पराड़कर जी के पत्रकार संघ में मजबूरी में चुने जाने वाले अध्यक्ष के रूप में है।

जाते - जाते इन पदाधिकारियों को 26 जनवरी के भोजपार्टी पर वरिष्ठ पत्रकार सुरेश प्रताप ने उन्हें उनका असली चेहरा दिखाकर यह साबित कर दिया कि अभी भी कलम के सिपाहियों के आगे सुभाष सिंह जैसे लोग बौने ही हैं। किसी अधिकारी को बुलाकर संघ के मंच से महिमा मण्डित करके भले ही अपना उल्लू सीधा किया हो किन्तु पत्रकारों में सुभाष सिंह कलम के स्थापित पत्रकार नहीं है। पत्रकार संघ उनके लिए छवि प्रबंधन का साधन जरूर बन गया है, इसी लिए इसे छोड़ना नहीं चाहते।

मजबूरी में चुने गए संघ के पूर्व बीबी यादव ने पत्रकारों के नाम पर 5 लाख की जमीन बेचकर डॉक्टर को बसाया

इसी कड़ी में मजबूरी में चुने गए पत्रकार संघ के पूर्व अध्यक्ष बीवी यादव जनसंदेश के फोटोग्राफर तो जरूर हैं पर उन्हें आज तक संस्थान ने अपना स्थाई कर्मचारी नहीं माना। बेचारे बीबी चंद रुपयों के लिए आज भी तपती दुपहरी, कड़ाके की ठंड और बारिश में साइकिल से ही फोटोग्राफी करते नजर आते हैं। इन्हें देख कर दया भी आती है और निर्दयी अखबार मालिकों पर गुस्सा भी। ऐसे बीवी यादव के लिए पत्रकारिता उनका धर्म नहीं है बल्कि इसी पत्रकारिता का चोला ओढ़कर पापी पेट और पारिवारिक जरूरतों के लिए पत्रकारपुरम में महज लगभग 5 लाख में डॉक्टर के रूपये से खरीदी गई जमीन को भारी मुनाफा लेकर एक डॉक्टर को बसा दिया। इनके विरोधी कहते फिर रहे हैं “जैसी करनी, वैसी भरनी” । बीबी यादव की आलोचना करने वाले शायद यह भूल गए हैं कि बीबी तो आज भी साइकिल से घूमते हैं, साधारण सी जिंदगी जीते हैं किंतु इसी पत्रकार पुरम में दर्जनों ऐसे पत्रकार और अखबारों के मालिकान हैं जिन्होंने पत्रकारों के नाम पर लाखों में जमीन हथिया और बेचकर करोड़ों कमाया उनके लिए क्या कहेंगे। दिग्गज पत्रकारों के पहली बार नेता बने बीबी यादव प्रेस फोटोग्राफर पर यह भी इल्जाम है कि उन्हें पत्रकारिता का ककहरा भी नहीं आता, बावजूद इसके पत्रकारिता के गुरुओं और कलम के सिपाहियों का अध्यक्ष बनना चाहते हैं। बीबी यादव की आखिर क्या मजबूरी है कि उनके लिए अध्यक्ष का चुनाव जीतना जरूरी है। आखिर बीबी ठहरे रंगकर्मी इसलिए कोई वेश धारण कर पत्रकारों के बीच अपने हंसी ठिठोली के दम पर उनका मनोरंजन करना अध्यक्ष के रूप में इनकी पहली प्राथमिकता होगी। इसकी आड़ में उनका क्या भला होता है यह पिछले बार के पत्रकार साथियों को भली प्रकार पता है, जब एक स्कूल से संघ की सीढ़ियों के निर्माण के नाम पर कितना लिया, कैसे खर्च किया और बाद में उस पर लीपा पोती की गई। फोटो ग्राफर बीबी यादव के लिए भी विजय सिंह की बदहाली कोई बड़ा मुद्दा नहीं रहा, तो क्या वे केवल अपना भला करने के लिए खड़े हैं चुनावी मैदान में। फिलहाल जब अखबार में मेहनत कर पेट नहीं भरेगा तो विवाह- शादी, मरनी- करनी से लेकर विभिन्न पार्टियों में फोटोग्राफी करके चंद रुपये कमाना कोई अपराध नहीं है।

अध्यक्ष पद के सबसे मजबूत उम्मीदवार राजनाथ तिवारी किसी पहचान के मोहताज नहीं है और पहली बार चुनावी मैदान में है। इनके पत्रकारिता के सफ़र की बात करें तो जनमुख, हिंदुस्तानए, जागरण, आईनेक्स्ट, जनसंदेश आदि अखबारों की लम्बी नौकरी करके पूरी तरह खाली है। इनके लिए मालिकों के खिलाफ समाचार पत्र कर्मचारी यूनियन के मंत्री अजय मुखर्जी के साथ मिलकर पत्रकारों की कोई लड़ाई लड़ना आसान है। श्री तिवारी को पत्रकार संघ के चुनाव में किंग मेकर की भूमिका निभाने वाले पूर्व अध्यक्ष विकास पाठक, प्रदीप कुमार, संजय अस्थाना आदि का पूरा समर्थन प्राप्त है। विकास पाठक गांडीव में नौकरी करते हुए अपने ही अखबार के खिलाफ मोर्चा खोला आज इस बात की चर्चा है कि उनके कार्यकाल में संघ का जितना विकास हुआ शायद कभी नहीं हुआ। साथ ही पत्रकार पुरम को वजूद में लाने की भी लंबी लड़ाई इन्हीं के नेतृत्व में लड़ी गई। इसके चलते पत्रकार पुरम में कौड़ियों के भाव में मिली जमीन को करोड़ो में बेचकर लोग मालामाल हो गए। कोई कुछ भी कहे विकास पाठक ने पत्रकारों को लखपति से करोड़पति बना दिया। विकास पाठक के लिए राजनाथ तिवारी अध्यक्ष और मनोज श्रीवास्तव को महामंत्री जितना उनकी प्राथमिकता है। प्रदीप कुमार और संजय अस्थाना ने भी ट्रेड यूनियन की लम्बी लड़ाई लड़ी है| श्री प्रदीप की मानें तो उन्हें ही इस बार जिताना है जो अखबार मालिकों के खिलाफ मजबूती से लड़े |

सबसे दिलचस्प लड़ाई महामंत्री पद के लिए है। इस बार वरिष्ठ पत्रकार विनय सिंह और क्रांतिकारी पत्रकार मनोज श्रीवास्तव ने ठाना है कि कथित डॉक्टर अत्रि भारद्वाज को संघ के मंत्री पद से हटाना है। क्योंकि अध्यक्ष सुभाष और कथित डॉक्टर अत्रि दोनों दोबारा संघ की कुर्सी हथियाना चाहते हैं। इनका रोना है कि इनके रहते हैं संघ का विकास होगा। अब इन्हें कौन बताएं कि दोनों वर्तमान पदाधिकारी मजबूरी में चुने गए थे। इनमें ऐसा कोई गुण नहीं है जो पत्रकारों का नेतृत्व कर सकें। दोनों के लिए मालिकों के चाटुकारीता और अपने हित के लिए किसी का पिछलग्गू बनने से कोई गुरेज नहीं है, बस इनका अपना भला होना जरूरी है। कथित डॉक्टर अत्रि इसी की आड़ में अपनी योग्यता से अधिक योग्य पत्रकारिता के विद्यार्थियों को विद्यापीठ में पत्रकारिता का पाठ भी पढ़ाते हैं।

विनय - मनोज की लड़ाई में लाली-लिपस्टिक वाला पत्रकार चुनाव हारेगा : अजय मुखर्जी

समाचार पत्र कर्मचारी यूनियन के नेता अजय मुखर्जीं  की मांने तो वर्तमान अध्यक्ष सुभाष सिंह के कार्यकाल में पत्रकार हितों की लड़ाई काफी कमजोर हुई है, ऐसे में मालिकों के खिलाफ पत्रकारों के हक और हुकूक की लड़ाई के लिए राजनाथ तिवारी अध्यक्ष और मनोज श्रीवास्तव महामंत्री का जीतना जरूरी है। कहा कि महामंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद पर वरिष्ठ पत्रकार विनय सिंह वह क्रांतिकारी पत्रकार मनोज सिंह के बीच सीधी टक्कर है, अगर मतदाताओं ने दोनों का समर्थन किया तो लाली- लिपस्टिक वाला पत्रकार भी जीत सकता है चुनाव, ऐसे में मतदान के दौरान समझदारी से मतदान करें तभी लाली- लिपस्टिक वाला पत्रकार हारेगा |

अब देखना है कि इस बार संघ के चुनाव में पत्रकार साथी अपनी दुकानदारी सजाने वालों को पदाधिकारियों को चुनते हैं, या नए चेहरे के रूप में राजनाथ तिवारी मनोज अथवा विनय में से किसके सिर जीत का सेहरा बांधते हैं।


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