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विज्ञापन के लिए सबकुछ करेंगे



 06/Apr/19

वाराणसी में जैसे ही स्कूलों कालेजों और विश्वविद्यालयों की वार्षिक परीक्षाएं समाप्त होती है वैसे ही समाचार पत्रों में शिक्षा और स्कूलों को ले कर लेख छपने लगते है । खास कर इंटरमीडिएट तक के प्राईवेट स्कूल इनके खबर के केंद्रबिंदु में रहते है । आजकल एक प्रमुख दैनिक समाचार पत्र में लगातार स्कूलों के बढ़े फीस, पुस्तकों, कॉपियों, ड्रेसों को स्कूलों द्वारा निर्देशित दुकानों से खरीदने की खबरों को प्रकाशित किया जा रहा है इन खबरों के अनुसार यह सब लम्बे-चौड़े कमीशन हेतु किया जा रहा है जिसपर सरकार व स्थानीय प्रशासन ध्यान नहीं दे रहा है । अब अगर मीडिया जागरूक हो ऐसी खबर अखबार में लिख रहा है तो इसका स्वागत करना चाहिए लेकिन यह सिर्फ इसलिए किया जा रहा है कि विगत दिनों पूर्वांचल स्कूल एसोशिएसन से सबद्ध्‍ स्‍कूलों ने स्थानीय अखबारों में विज्ञापन देना बंद कर दिया है । विज्ञापन बंद करने के पीछे की छन कर आई खबर के अनुसार यह रहा है कि एक तो ये समाचारपत्र विज्ञापन के लिए सत्य लिखने से बचते है, दूसरे विज्ञापन दरों में बढ़ोत्तरी होना है ।

स्कूल की फीस में, कॉपी-किताब व ड्रेस के दरों में बेतहाशा वृद्धि की खबर तो है पर उन विद्यालय या कोचिंग सेंटरों की खबरे नहीं छापी जाती िजनके िवज्ञापन अखबार में दे िदये जाते है खास कर पड़ताल वाली खबर। जिससे फर्जी तरीके से संचालित हो रहे ऐसे विद्याकेंद्रों या कोचिंग सेंटरों की सच्चाई जनता तक पहुँच सके । वाराणसी के एक नंबर कोचिंग होने का दावा करने वाले एक कोिचंग  का यही प्रमुख अखबार पूरे-पूरे पेज का विज्ञापन छापता है और उसके फर्जीवाड़े पर कभी पड़ताल नहीं करता, जब कि यह कोचिंग सेंटर अपने विज्ञापन के दम पर भ्रामक सामग्री छपवा कर हर वर्ष न जाने कितने छात्रों के भविष्य के साथ धोखा-धड़ी करता आ रहा है। इसकी सत्यता जानने के लिए कोई भी भेलूपुर थाने में इस कोचिंग पर दर्ज मुकदमों की संख्या से जान सकता है पर यह जानकारी की कौन सा कोचिंग ठीक है कौन सा नहीं यह वह प्रमुख अखबार कभी नही छापता।

अप्रैल के माह में स्कूलों के नए सत्र का आगाज होता है ऐसे में विज्ञापन प्राप्त करना अखबार का प्रमुख उद्देश्य हो जाता है और इसके लिए ही ऐसे अखबारों की कलम में अचानक धार दिखने लगती है । विज्ञापन प्राप्ती ही इनके कलम की धार का कारक होती है न कि जनता को जागरूक करने के उद्देश्य से । शहर के एक विद्यालय की पिछले दिनों एक खबर छापी गई जिसमें लिखा गया कि फीस न देने के कारण एक छात्र को विद्यालय प्रबंधक ने उसे दो घंटे कान पकड़ कर धूप में खड़ा कर दिया जिससे छात्र की तबियत बिगड़ गई जिसकी शिकायत प्रधानमंत्री से लगायत अन्य प्रशासनिक अधिकारियों से की है कि, विद्यालय की मान्यता समाप्त कर दी जाए । पर अखबार ने विद्यालय का पक्ष नहीं लिखा । जब इस विद्यालय में क्लाउन टाइम्स ने इस खबर पर पड़ताल की तो पता चला कि सच कुछ और है । धूप में खड़ा करने का आरोप लगाने वाला अभिभावक विगत दो वर्षों से छात्र की फीस नहीं जमां कर रहा था  और जब परीक्षा के समय विद्यालय प्रशासन ने परीक्षा दे रहे छात्र से दूसरे दिन अपने अभिभावक को ले कर आने की बात कही तो दूसरे दिन वो कतिथ अभिभावक छात्र की परीक्षा छुड़वा कर खुद अकेले विद्यालय गया और प्रबंधक की गैरमौजूदगी में विद्यालय के शैक्षणीक कर्मचीरियों को अनाप-शनाप बोलते हुए विद्यालय बंद कराने की धमकी दे डाली और यह खबर उस दैनिक अखबार ने बिना तथ्य के सिर्फ इसलिए छाप दी की इस वक्त विद्यालयों के विज्ञापन मिलने का सीजन है और जिस विद्यालय कि खबर छापी गई वो विद्यालय अपने १५ वर्षों के शैक्षणिक सफर में किसी भी अखबार में विज्ञापन नहीं छपवाया है ।

वाराणसी में जैसे ही स्कूलों कालेजों और विश्वविद्यालयों की वार्षिक परीक्षाएं समाप्त होती है वैसे ही समाचार पत्रों में शिक्षा और स्कूलों को ले कर लेख छपने लगते है । खास कर इंटरमीडिएट तक के प्राईवेट स्कूल इनके खबर के केंद्रबिंदु में रहते है । आजकल एक प्रमुख दैनिक समाचार पत्र में लगातार स्कूलों के बढ़े फीस, पुस्तकों, कॉपियों, ड्रेसों को स्कूलों द्वारा निर्देशित दुकानों से खरीदने की खबरों को प्रकाशित किया जा रहा है इन खबरों के अनुसार यह सब लम्बे-चौड़े कमीशन हेतु किया जा रहा है जिसपर सरकार व स्थानीय प्रशासन ध्यान नहीं दे रहा है । अब अगर मीडिया जागरूक हो ऐसी खबर अखबार में लिख रहा है तो इसका स्वागत करना चाहिए लेकिन यह सिर्फ इसलिए किया जा रहा है कि विगत दिनों पूर्वांचल स्कूल एसोशिएसन से सबद्ध्‍ स्‍कूलों ने स्थानीय अखबारों में विज्ञापन देना बंद कर दिया है । विज्ञापन बंद करने के पीछे की छन कर आई खबर के अनुसार यह रहा है कि एक तो ये समाचारपत्र विज्ञापन के लिए सत्य लिखने से बचते है, दूसरे विज्ञापन दरों में बढ़ोत्तरी होना है ।

स्कूल की फीस में, कॉपी-किताब व ड्रेस के दरों में बेतहाशा वृद्धि की खबर तो है पर उन विद्यालय या कोचिंग सेंटरों की खबरे नहीं छापी जाती िजनके िवज्ञापन अखबार में दे िदये जाते है खास कर पड़ताल वाली खबर। जिससे फर्जी तरीके से संचालित हो रहे ऐसे विद्याकेंद्रों या कोचिंग सेंटरों की सच्चाई जनता तक पहुँच सके । वाराणसी के एक नंबर कोचिंग होने का दावा करने वाले एक कोिचंग  का यही प्रमुख अखबार पूरे-पूरे पेज का विज्ञापन छापता है और उसके फर्जीवाड़े पर कभी पड़ताल नहीं करता, जब कि यह कोचिंग सेंटर अपने विज्ञापन के दम पर भ्रामक सामग्री छपवा कर हर वर्ष न जाने कितने छात्रों के भविष्य के साथ धोखा-धड़ी करता आ रहा है। इसकी सत्यता जानने के लिए कोई भी भेलूपुर थाने में इस कोचिंग पर दर्ज मुकदमों की संख्या से जान सकता है पर यह जानकारी की कौन सा कोचिंग ठीक है कौन सा नहीं यह वह प्रमुख अखबार कभी नही छापता।

अप्रैल के माह में स्कूलों के नए सत्र का आगाज होता है ऐसे में विज्ञापन प्राप्त करना अखबार का प्रमुख उद्देश्य हो जाता है और इसके लिए ही ऐसे अखबारों की कलम में अचानक धार दिखने लगती है । विज्ञापन प्राप्ती ही इनके कलम की धार का कारक होती है न कि जनता को जागरूक करने के उद्देश्य से । शहर के एक विद्यालय की पिछले दिनों एक खबर छापी गई जिसमें लिखा गया कि फीस न देने के कारण एक छात्र को विद्यालय प्रबंधक ने उसे दो घंटे कान पकड़ कर धूप में खड़ा कर दिया जिससे छात्र की तबियत बिगड़ गई जिसकी शिकायत प्रधानमंत्री से लगायत अन्य प्रशासनिक अधिकारियों से की है कि, विद्यालय की मान्यता समाप्त कर दी जाए । पर अखबार ने विद्यालय का पक्ष नहीं लिखा । जब इस विद्यालय में क्लाउन टाइम्स ने इस खबर पर पड़ताल की तो पता चला कि सच कुछ और है । धूप में खड़ा करने का आरोप लगाने वाला अभिभावक विगत दो वर्षों से छात्र की फीस नहीं जमां कर रहा था  और जब परीक्षा के समय विद्यालय प्रशासन ने परीक्षा दे रहे छात्र से दूसरे दिन अपने अभिभावक को ले कर आने की बात कही तो दूसरे दिन वो कतिथ अभिभावक छात्र की परीक्षा छुड़वा कर खुद अकेले विद्यालय गया और प्रबंधक की गैरमौजूदगी में विद्यालय के शैक्षणीक कर्मचीरियों को अनाप-शनाप बोलते हुए विद्यालय बंद कराने की धमकी दे डाली और यह खबर उस दैनिक अखबार ने बिना तथ्य के सिर्फ इसलिए छाप दी की इस वक्त विद्यालयों के विज्ञापन मिलने का सीजन है और जिस विद्यालय कि खबर छापी गई वो विद्यालय अपने १५ वर्षों के शैक्षणिक सफर में किसी भी अखबार में विज्ञापन नहीं छपवाया है । अगर यह अखबार इस विद्यालय में मिलने वाले शिक्षा के गुणवत्तता पर कुछ लिखता उनके योग्य या अयोग्य शिक्षकों के बारे में कुछ लिखता तो निश्चित रूप से यह माना जाता कि अखबार जागरूकता हेतु मीडिया का उपयोग कर रहा है ।

 

पर यहाँ दोहरा चरित्र अखबार के मंशा पर शक पैदा करता है । एक तरफ तो विज्ञापन दिया तो न लिखने का अभयदान ! न दिया तो लिखकर भय दिखाने का कमाल । यह है आज की मीडिया का वो चेहरा जिसका असली चेहरा लोगों से छुपा रहता है ।


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