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पहले काशी की सेवा सोच में थी अब देश सेवा है: राकेश त्रिपाठी

संजय कुमार मिश्र

 18/Apr/19

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017  में वाराणसी से एक प्रत्याशी का आगमन हुआ था जो अपने जीवन के कई सफल पायदान चढ़ने के बाद समाज सेवा की नीयत से राजनीति में कदम रखने जा रहा था । राकेश त्रिपाठी नामक यह प्रत्याशी चुनाव के चार माह पूर्व शहर का सबसे लोकप्रिय प्रत्याशी बन कर उभरा । परंतु मोदी मैजिक में जब बड़े-बड़े राजनीतिक धुरंधरों की नहीं चली तो राकेश त्रिपाठी की कैसे चलती और तब जब उनकी पार्टी बसपा का शहर में कभी आधार था ही नही, फिर भी  राकेश त्रिपाठी बसपा से ही चुनाव लड़े और दक्षिणी विधानसभा में चुनाव के चार माह पूर्व अपने क्षेत्र के वंचितों आपदाग्रस्तों की समस्याओं का अपने स्तर पर समाधान करना प्रारंभ किया बिना राजनीतिक फायदे नुकसान की सोचे ।  इसका नतिजा यह हुआ कि वो शहर के हर क्षेत्र के मजलूमों के मसिहा बन कर लोकप्रियता हासिल करने में सफल रहें कोनियां कज्जाकपुरा में बाढ़ के समय सरकारी मदद आने का इंतजार न करते हुए खुद ही अनेकों पम्प लगवा दिये। बरसात में बाढ़ग्रस्त एरिया में मच्छरों के बढ़ जाने पर अपने संसाधन से फॉगिंग मशीन की व्यवस्था कर के लोगों को राहत प्रदान की थी । उनके खाने- पीने से ले कर स्वास्थ्य सेवा तक का पूरा ध्यान रखा। जब चेतगंज थानातंरगत पितरकुण्डा में एक जर्जर मकान  अवैध पटाका फैक्ट्री के कारण धमाकों के बीच धराशाही हो गया तो उसके मलबे में कई लोगों के दबने की आशंका पर पहुँची पुलिस, प्रशासन के आला आफिसर की अगुवाई में राहत कार्य चला और सभी घायलों को चिकित्सालय भेज सबने मान लिया कि अब इस मलबे में कोई नही है । जब मीडिया को प्रशासन, नेता यह कह कर स्थिति स्पष्ट कर वाहवाही लूट रहे थे कि सब कुशलता पूर्वक राहत कार्य सम्पन्न हो गया है। उस समय राकेश चुनाव की परवाह न करते हुए घायलों को अपने कार से कबीरचौरा राजकीय हास्पिटल से ट्रामा सेंटर पहुंचाने में लगे थे। जबकि अन्य राजनीतिक दलों के नेता उस समय मीडिया कवरेज में व्यस्त हो बयानबाजी करने में व श्रेय लेने की होड़ में लगे हुए थे । राकेश त्रिपाठी घायल लोगों को जिन्हें वो अस्पताल ला रहे थे उन्हीं में से एक ने तब बताया कि मलबे में कुछ और लोग है । राकेश त्रिपाठी यह बात प्रशासन को तुरंत अवगत कराते हुए दुर्घटना वाले स्थान पर पहुंचे और मलबे मे से खुद अकेले ही दबे लोगों की खोज करने लगे जो बेहद खतरनाक हो सकता था उनकी जान भी जा सकती थी। वहां तैनात पुलिससकर्मीयों व स्थानीय लोग किसी और के दबे होने से इंकार करते रहे । राकेश त्रिपाठी ने बिना अपने जान की परवाह करते हुए सारी चेतावनी को दरकिनारा कर खुद ही मलबा हटाने लगे । उनका एकल प्रयास रंग लाया और मलबे से कुछ और लोगों को निकाला गया था जिस पर तत्कालीन डीएम व एसएसपी ने उनके हौसले और सेवा जज्बे की व्यक्तिगत तौर पर तारीफ की थी। जब सरकार ने नोटबंदी की तो कई कल-कारखानों पर ताला पड़ जाने के कारण कई लोग बेरोजगार हो गए थे ऐसे कईयों के घरों में राकेश त्रिपाठी ने राशन पहुंचा कर अपने मानवीय गुण का परिचय दिया था । बिना जाति-धर्म के बंधन का ध्यान दिए गरीब परिवारों के कन्याओं का विवाह करवाया । उस समय दुर्गापूजा व मुस्लिम त्योहारों पर होने वाले कार्यक्रमों में तमाम राजनेताओं के बाद भी सबसे ज्यादा होड़ राकेश त्रिपाठी को समारोहों में शामिल करने की आयोजकों में थी । दल कोई भी रहा हो पर सभी दल के लोग राकेश त्रिपाठी की प्रशंसा किये बिना नहीं रह पाते थे और यह भी पहली बार देखने को मिला कि राकेश त्रिपाठी ने चुनाव प्रचार में किसी भी राजनीतिक पार्टी या प्रत्याशियों की कभी न तो बुराई की न ही कटाक्ष किए ।

चुनाव में मोदी का इतना जबरदस्त असर रहा कि अच्छे-अच्छे दिग्गज हार गए थे। पर हार कर जो जीते वह कहलाता है बाजिगर । राकेश त्रिपाठी वही बाजीगर साबित हुए, वो चुनाव हार जरूर गए पर यहां के जन-मानस पर इतना गहरा असर छोड़ गए कि लोग उन्हें हमेशा याद करते रहे। राकेश त्रिपाठी राजनीति से हटकर अपने स्वयंसेवी संगठन के जरिये लोगों की सेवा करते रहे। राकेश त्रिपाठी बताते हैं कि मोदी जी के देश सेवा के जज्बे से प्रभावित हो कर उन्होंने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की है और देश के किसी भी हिस्से में वह जन-सेवा करने को तैयार है । अब यह तय करने का काम तो समय करेगा कि क्या राकेश त्रिपाठी अपना सेवा क्षेत्र वाराणसी चुनते है या कोई और जिला, चुनाव लड़ेगें कि  नही, लड़ेगें तो कहां से । यह सब तो अभी भविष्य के गर्भ की बातें है पर यह तो सूनिश्चित है कि जो भी होगा जहां भी होगा वह राजनीतिक दृष्टिकोण से सही होगा। राकेश त्रिपाठी का कहना है कि पहले काशी की जनता के सेवा का संकल्प था पर मोदी जी के देश सेवा से प्रेरित हो कर भाजपा की सदस्यता ली है और पूरे देश में जहां भी कहा जाएगा जनसेवा हेतु तत्पर रहूंगा ।

 राकेश त्रिपाठी के भाजपा में आने से जनता जहां प्रसंन्न है तो स्थानीय भाजपाई उन्हें किस हद तक स्वीकारते है यह तो भविष्य की बात है पर स्थानीय डॉ.अशोक राय, अशोक चौपसिया या दयाशंकर मिश्र को जिस तरह से भाजपाईयों द्वारा स्थानीय स्तर पर आज भी नहीं स्वीकारा गया है वैसा ही कुछ राकेश त्रिपाठी के साथ होता है या किस्मत पलट कर डॉ. अवधेश सिंह की तरह भाजपा ज्वाईन करते ही विजयश्री के साथ कारवाँ आगे बढ़ता है। बहरहाल स्थानीय नेताओं में राकेश त्रिपाठी ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण करके बेचैनी बढ़ा दी है ।


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