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लोगों की आवाज बने रवीश कुमार को मिला रेमन मैग्सेसे अवार्ड

सुरेश प्रताप
वरिष्ठ पत्रकार के फेसबुक वॉल से
 06/Aug/19

कौन है पत्रकार ?
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अगर आप लोगों की आवाज बनते हैं तो आप पत्रकार हैं !!


रेमन मैग्सेसे संस्थान ने एनडीटीवी के चर्चित पत्रकार रवीश कुमार को वर्ष 2019 का रेमन मैग्सेसे अवाॅर्ड देने का निर्णय लेते हुए जो टिप्पणी की है वह वर्तमान भारतीय मीडिया के चरित्र को रेखांकित करती है. और यह उन तमाम भक्तों के मुंह पर करारा तमाचा है, जो रवीश को गालियां देते हैं.

यह सम्मान एशिया में साहसिक और परिवर्तन कारी नेतृत्व के लिए दिया जाता है. कई भारतीयों को यह सम्मान मिल चुका है. अवार्ड देने वाली संस्था ने कहा है कि "रवीश कुमार अपनी पत्रकारिता के जरिए उनकी आवाज को मुख्यधारा में ले आए, जिनकी हमेशा उपेक्षा की जाती है."

रेमन मैग्सेसे संस्थान की ओर से #पत्रकार की परिभाषा का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि "अगर आप लोगों की आवाज बनते हैं तो आप पत्रकार हैं." और रवीश पत्रकारिता की इस परिभाषा पर खरे उतरते हैं. जबकि तमाम गोदी मीडिया के जर्नलिस्ट पीछे छूट गए. आखिर टीवी चैनलों की बहस में उछल-उछल कर वो अपने को असली देशभक्त होने का दावा करते थे. तो फिर क्यों पिछड़़ गए ?

मैग्सेसे फ़ाउंडेशन ने रवीश कुमार की पत्रकारिता को उच्चस्तरीय, सत्य के प्रति निष्ठा, ईमानदार और निष्पक्ष बताया है. रवीश कुमार ने अपनी पत्रकारिता के माध्यम से उन बेजुबान लोगों की आवाज को राष्ट्रीय स्तर पर उठाई, जिनकी चर्चा कोई नहीं करता था. एनडीटीवी पर रात्रि 9 बजे प्राइम टाइम का उनका प्रोग्राम इतना लोकप्रिय हो गया था कि अनेक दर्शकों को उसकी पहले से ही प्रतीक्षा रहती थी. इसके लिए उन्हें अनेक खतरों का भी सामना करना पड़ा.

उनके चैनल का प्रसारण रोकने की धमकियां भी मिलीं. लेकिन सत्ता की हनक के सामने उन्होंने कभी घुटने नहीं टेका. तमाम खतरों व धमकियों के बावजूद उन्होंने भारतीय पत्रकारिता की गौरवशाली परम्परा के इतिहास की मशाल उठाए रखी. उसकी लौ को बुझने नहीं दिया. हमारे पास गणेश शंकर विद्यार्थी से लेकर पराड़कर जी द्वारा स्थापित की गई पत्रकारिता के मानक व सिद्धांत की थाती है. हम उस महान परम्परा को कभी आंच नहीं आने देंगे. हमारे अनेक स्वतंत्रता सेनानी भी पत्रकार थे. उनका भी एक उज्जवल इतिहास है.

रवीश कुमार से मेरी पहली मुलाकात वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान बनारस में गंगा किनारे तुलसी घाट पर हुई थी. तब वो चुनावी खबर की कवरेज करने बनारस आए थे. और हम किसी अखबार में नहीं थे. फिर भी खबरों के प्रति मेरी उत्सुकता बनी थी. तब इंग्लैंड से प्रकाशित चर्चित अंग्रेजी अखबार इंडिपेंडेंट के एक पत्रकार बनारस आए थे. और उनकी मदद हम अपने मित्र पत्रकार एलबीके दास के साथ कर रहे थे.

उसी दौरान घाट की सीढ़ियों पर बैठकर लोकसभा चुनाव की हलचल के परिप्रेक्ष्य में उनसे कुछ गुफ्तगू हुई थी. वो सरल और मिलनसार प्रवृत्ति के व्यक्ति हैं. शाम का समय था. हमने महसूस किया कि घाट पर होने वाली गतिविधियों पर भी उनकी पैनी नज़र थी. तब नरेन्द्र मोदी भाजपा के उम्मीदवार थे और उन्हें टक्कर देने के लिए आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल मैदान में उतरे थे. जिसके कारण बनारस संसदीय सीट पर अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की भी पैनी नज़र थी.

उस दौरान बनारस के लोकसभा चुनाव के संदर्भ में एक डाक्यूमेंटरी बनाने पर भी हम काम कर रहे थे, जिसके निदेशक थे चर्चित डाइरेक्टर कमल स्वरूप ! उन्हें अनेक पुरस्कार भी मिले हैं. और उस डाक्यूमेंटरी का नाम था "बैटिल आॅफ बनारस !" जो बनी भी.

तो चर्चित पत्रकार रवीश कुमार को मैग्सेसे अवाॅर्ड मिलने से हम खुश हैं. उन्हें बधाई ! पत्रकारिता की मशाल को उन्होंने बुझने नहीं दी. हमें उन पर गर्व है.भारतीय हिंदी पत्रकारिता को संत्राश के इस दौर में उन्होंने एक नई दिशा दी है, जिस पर हमें गर्व होना ही चाहिए. एनडीटीवी के मैनेजिंग एडिटर रवीश कुमार पत्रकारिता जगत में अपनी अलग पहचान बना चुके हैं. और उन्हें मिला है वर्ष 2019 का "रैमाॅन मैग्सेसे" पुरस्कार ! बधाई


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