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हिंदी दिवस पर बनारस के अस्सीघाट की अंग्रेजी

सुरेश प्रताप
वरिष्ठ पत्रकार
 17/Sep/19

विदेशी सैलानी दम्पत्ति को गंगा में नाव से जलविहार कराने के बाद जब मल्लाह उन्हें लेकर घाट किनारे पहुंचा तब नाव 3-4 फुट किनारे पानी में ही थी. नाव डगमगा रही थी और नाविक उछलकर घाट पर आ गया. विदेशी सोचने लगे कि क्या करें?

नाविक उनकी समस्या समझ गया और उन्हें अपनी अंग्रेजी में समझाते हुए बोला, "कम ऑन ! उछलकर, इधर हां...! ससुरा कह रहे हैं उछलकर आ जा...!" और अपने हाथ-पैर से उछलने-कूदने की एक्टिंग भी करने लगा. नाविक अपनी अंग्रेजी उन्हें समझाने में सफल रहा. और अपना हाथ बढ़ाकर उन्हें नाव से नीचे उतारने में सफल हो गया।

जापान, इंग्लैंड, अमेरिका, जर्मनी, इटली आदि चाहे जिस देश के सैलानी हों नाविक अपनी टूटी-फूटी अंग्रेजी, हिन्दी-भोजपुरी मिश्रित भाषा में संवाद स्थापित कर ही लेते हैं. वो इसी प्रकार गंगा, घाट और बनारस के महत्व को भी विदेशी सैलानियों को समझा देते हैं।

बनारस की विशेषता को समझाते हुए मल्लाह ने उन्हें कहा, "बनारस इज मुक्तिधाम"! विदेशी पर्यटक ने पूछा, "ह्वाट इज मुक्टि ?" फिर नाविक सोचा कैसे इसे समझाएं. उसने आसमान की तरफ मुंह करके आंख बंदकर मरने का अभिनय करते हुए बोला..."टें बोल जाना इज मुक्टि...! का समझे...? गो इन स्काई...!"

और विदेशी सैलानी समझ गया मुक्ति का दर्शन...! तो यह है विदेशियों से संवाद स्थापित करने की यहां के मल्लाहों की अपनी भाषा! कुछ मल्लाह धीरे-धीरे अपनी अंग्रेजी में सुधार भी किए हैं, क्योंकि इसका रिश्ता उनकी जीविका से जुड़ा है हिंदी दिवस पर इस विमर्श के निहितार्थ को समझने की जरूरत है


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