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पिशाच मोचन में विधिवत श्राद्ध व पिंड दान से मिलती है पित्रों की आत्मा को शांति



 24/Sep/19

"जन्म और मृत्यु" यह जीवन की सच्चाई है।यहां पैदा होने वाला हर जीव एक दिन जरूर अपने शरीर को त्यागता है।हिन्दू धर्म में ऐसा माना जाता है कि शरीर को त्यागने के पश्चात पुत्र द्वारा हुए श्राद्ध से दिव्यांग आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है। वैदिक परंपराओं के अनुसार यह मानयता है कि भाद्रपद महीने की पूर्णिमा से लेकर अश्विन की अमावस्या तक के लगभग 15 दिन पूर्वजों को समर्पित 'पितृ पक्ष' के रूप में मनाया जाता है। इस दौरान पितृ स्वर्ग लोक से उतरकर धरती पर आते हैं। पौराणिक मानयताओं के अनुसार अगर पितृ पक्ष में विधिवत् श्राद्ध, पिंड दान और तर्पण किया जाए तो दिवंगत आत्मा को शांति मिलती है और वे प्रसन्न होकर लौटते हैं।वैसे तो कुल 16 श्राद्ध होते हैं, लेकिन अष्टमी और नवमी के श्राद्ध का महत्व ज्यादा माना गया है।

इन्हीं मान्यताओं के साथ पौराणिक व धार्मिक शहर काशी में पिशाच मोचन में पितृपक्ष पर श्राद्ध की प्रक्रिया बहुत ही प्रचलित है।पितृ पक्ष में यहां दूर-दूर से लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध करने आते हैं ताकि उनकी आत्मा को मोक्ष प्राप्त हो और उन्हें उनका आशीर्वाद मिले। इस जगह की यह भी मान्यता है कि यहां पर लोग प्रेत आत्माओं से जुड़ी विकट समस्याओं से मुक्ति पाने के उद्देश्य से भी आते हैं।

पितृ पक्ष के इस महापर्व पर क्लाउन टाइम्स ने पिशाच मोचन के महंत कृतपोहित पंडित मुन्ना लाल पांडे से की सीधी बात।जहां उन्होंने बताया कि पितृपक्ष पूर्वजों को समर्पित 15 दिन का महापर्व होता है। जिस दौरान हम अपने पूर्वजों को याद कर उनका श्राद्ध करते हैं और उनके आत्मा के शांति की प्रार्थना करते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि हिंदू धर्म में मरे हुए आत्माओं से ज्यादा संबंध रखा जाता है। इसीलिए हम व्यक्ति के मृत्यु के बाद दिव्यांग आत्मा को समर्पित दसवा, तेरही,वार्षवी, नारायणबलि, त्रिपिंडी व गयाश्राद्ध जैसी प्रक्रिया करते हैं ताकि उनकी आता को मुक्ति मिल सके और इसीलिए 15 दिन के तर्पण में पितृपक्ष का बहुत महत्व है।जिसके माता-पिता नहीं होते है वह यहाँ श्राद्ध करने आते हैं। उन्होंने पितृपक्ष में श्राद्ध के अभाव को पितृदोष बताते हुए कहा कि इसका ज्ञात ब्राह्मण द्वारा पत्रा देखने पर होता है जिसके कारण घर-परिवार में विकास में बाधा आती है।इसके साथ ही व्यक्ति को शारीरिक,मानसिक व आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है जिससे हम पितृ पक्ष में श्राद्ध प्रक्रिया के पश्चात ही निजात पा सकते हैं इसलिए पितृपक्ष में श्राद्ध की प्रक्रिया अति महत्वपूर्ण मानी जाती है। उन्होंने यह भी बताया कि श्राद्ध के दौरान कुश की अंगूठी महत्वपूर्ण सामग्री के रूप में ग्रहण की जाती है क्योंकि हिंदू धर्म में कुश को भगवान ब्रह्मा के रोएं का प्रतीत माना जाता है जिसमें ब्रह्मा,विष्णु,महेश तीनों के वास की मान्यता भी है और इसी कारण हिंदू धर्म के हर शुभ व अशुभ कार्यों में कुश की अंगूठी दाएँ हाथ की अनामिका उंगली में ग्रहण की जाती है।

पिशाच मोचन में अदभुत व पुराना पीपल वृक्ष भी देखा गया जिस पर सिक्के ,डोरी व मृतकों की तस्वीरें जैसी चीज़े लगी होती हैं की विवेचना करते हुए महंत जी ने बताया कि बहुत से लोग यह वहम रखते हैं कि प्रेत आत्माएं उन्हें परेशान कर रहे हैं ऐसे लोग यहां आकर उनकी पूजा कराते हैं और उनके नाम से यह कटिया सिक्के व तस्वीरें पीपल के पेड़ पर लगाते हैं जो कि केवल मन का वहम है उनकी कल्पन है।

इस अवसर पर पंडित विनोद कुमार दुबे,पंडित विश्वजीत मिश्रा व नेपाल के पंडित कपिल देव पाण्डेय ने पितृ पक्ष पर महत्वपूर्ण जानकारियां दी ओर इस महापर्व के महत्व को भी बताया।


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