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लेप्रोस्कोपिक सर्जरी,एक वरदान: डॉ. शलभ गुप्ता



 16/Jan/20

आशीर्वाद मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल महमूरगंज वाराणसी के प्रख्यात लेप्रोस्कोपिक सर्जन डॉ.शलभ गुप्ता से क्‍लाउन टाइम्‍स ने लेप्रोस्कोपिक सर्जरी की विशेषता व पद्धति के बार में खास बात चीत की जिसमे उन्‍होंने बताया कि अपेंडिक्स, गाल ब्लेडर, पथरी, हर्निया, बच्चेदानी के ऑपरेशन ओवेरियन ट्यूमर, किडनी के कई ऑपरेशन लेप्रोस्कोपिक पद्धति द्वारा किए जाते हैं। बांझपन के मरीजों के लिए भी यह पद्धति काफी उपयोगी है।
अत्याधुनिक सर्जरी की विधा मरीजों को अधिक आराम और सहूलियतें पहुँचाने के उद्देश्य से विकसित की जा रही हैं। आज अधिकांश मेजर सर्जरी दूरबीन पद्धति से की जा रही है। इस सर्जरी के बाद मरीजों को ठीक होने और काम पर लौटने में कम समय लगता है। इससे मरीजों के अस्पताल में रहने के दिनों में तेजी से कमी आ रही है। आज किसी भी मेजर सर्जरी के बाद भी मरीज दो या तीन दिन में घर लौटने लगा है।
आज दुनिया काफी तेजी से प्रगति कर रही है एवं दिन-प्रतिदिन बदल रही है। ठीक इसी तरह चिकित्सा क्षेत्र भी निरंतर प्रगति कर रहा है एवं बदल रहा है। आज बेहतर दवाइयों एवं नई तकनीकों से हजारों मरीजों की जान बचाई जा रही है, जो पूर्व में संभव नहीं था। आज के इस प्रतिस्पर्धी जीवन में मरीज बेहतर इलाज की अपेक्षा रखते हैं जो कि दर्दरहित, सुरक्षित, शीघ्र एवं किफायती हों।
लेप्रोस्कोपिक सर्जरी (दूरबीन शल्य चिकित्सा पद्धति) द्वारा ऑपरेशन मरीजों के लिए एक वरदान साबित हुई है। इस शल्य चिकित्सा पद्धति को की-होल सर्जरी या पिनहोल सर्जरी भी कहा जाता है। यह एक अत्याधुनिक शल्य चिकित्सा पद्धति है जिसमें पेट के ऑपरेशन बहुत ही छोटे चीरों (0.5 से 1.सेमी.) के द्वारा संपन्न किए जाते हैं। पहले इन्हीं ऑपरेशनों के लिए 5 से 8 इंच तक के चीरे लगाने की आवश्यकता पड़ती थी।
लेप्रोस्कोपिक सर्जरी में मुख्य रूप से एक टेलीस्कोप को वीडियो कैमरा के साथ जोड़ा जाता है। इस टेलीस्कोप को छोटे चीरे के द्वारा (जो कि नाभि के नीचे बनाया जाता है) पेट में डाला जाता है एवं संपूर्ण पेट की सूक्ष्मता से जाँच की जाती है। सर्जन तथा उसकी टीम पेट के अंदर के संपूर्ण चित्र टीवी मॉनीटर पर देखकर ऑपरेशन करते हैं जिससे गलती की संभावना काफी कम रहती है। इस सर्जरी के लिए विशेष लंबे औजारों की आवश्यकता होती है। चूँकि इस सर्जरी में बहुत ही सूक्ष्म चीरे लगाए जाते हैं एवं पेट की मांसपेशियों को नहीं काटा जाता है, अतः मरीज को इस पद्धति से अनेक लाभ हैं। जैसे
* कम दर्द एवं कम दवाओं का उपयोग


* कम संक्रमण (इन्फेक्शन) की संभावना
* काफी कम ब्लड लास
* अतिशीघ्र रिकवरी
* अस्पताल से एक या दो दिन में छुट्टी
* बड़े एवं भद्दे चीरों के निशानों से छुटकारा
* ऑपरेशन के उपरांत होने वाली हर्निया की समस्या से मुक्ति

इस चिकित्सा पद्धति की कुछ सीमाएँ भी हैं। यह एक टीम वर्क है जिसमें विशेष प्रशिक्षण प्राप्त विशेषज्ञ सर्जन एवं उसकी विशेषज्ञ टीम की आवश्यकता होती है। आधुनिक ऑपरेशन थिएटर की भी आवश्यकता होती है।

 


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