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राममंदिर के शिलान्यास के बाद के बाद



 10/Aug/20

सुरेश प्रताप 

वरिष्‍ठ पत्रकार

कोरोना वायरस ने रहनुमाओं के दावे, जंग की तैयारी, प्रशासनिक व अस्पतालों की व्यवस्था के सच को अब सामने ला दिया है। कुछ माह पहले तक जो ताली, थाली, शंख, पटाखा बजाकर और अयोध्या में राममंदिर के शिलान्यास के बाद कोरोना के दम तोड़ देने के दावे करके झूठ का वातावरण बना रहे थे, उसकी हवा निकल चुकी है। दीप जलाने और आसमान से पुष्प वर्षा से भी कोरोना वायरस नहीं डरा और अब सबको डरवा रहा है।

कोरोना वायरस ने जब उनके दरवाजे पर दस्तक दी है, तब उनकी नींद टूटी है। अखबारों व टीवी चैनलों द्वारा "जमाती-जमाती" का जो झूठ प्रारम्भिक दौर में ही फैलाया गया था, उसका सच भी अब सामने आ चुका है। हम इस बीमारी से फैलने वाले मानसिक मनोदशा पर शुरू से ही नज़र गड़ाए हैं। बनारस के पत्रकारपुरम् कालोनी में रहते हुए हमने लॉकडाउन के दौरान और उसमें राइट-लेफ्ट की नीति के तहत पैदा हुई मन:स्थिति पर जो असर पड़ा था, उसे अपनी इस रिपोर्ट में रेखांकित करने की कोशिश करेंगे। यह 5 अगस्त को अयोध्या में राममंदिर शिलान्यास के बाद बन रहे "नया भारत" का सच है।

22 मार्च को जब "जनता कर्फ्यू" लागू किया गया था, उस दिन शाम को हमारी कालोनी में रहने वाले चैनलों के रिपोर्टर अपनी बाइट तैयार करने के तमाशे की शूटिंग कर रहे थे। उसके बाद 24 मार्च की रात को पीएम मोदी ने 21 दिन के लॉकडाउन का ऐलान करते हुए दावा किया था कि हम इस महाभारत में कोरोना को पराजित कर देंगे। लेकिन उस झूठ का सच आज सामने है। अब देश में संक्रमितों की संख्या बीस लाख से अधिक 22,88,611 पहुंच गई है, जबकि मृतकों की संख्या 42,518 हो गई है।

22 मार्च को पत्रकारपुरम् कालोनी में खूब ताली-थाली बजी थी, घी के दीप जले और पटाखे छोड़े गए थे। अब कोई दीप नहीं जला रहा है। कालोनी में सन्नाटा पसरा है। पत्रकार साथी राकेश चतुर्वेदी कोरोना वायरस की जद में आने से शहीद हो गए हैं। "दैनिक जागरण" अखबार में काम करने वाले दो साथियों के घर को लकड़ी की बल्ली लगाकर कर सील कर दिया गया है। जागरण दफ्तर खुद में कोरोना हब बन चुका है। वहां 46 कोरोना पॉजिटिव मिले हैं और 20 कर्मचारी अपनी जांच कराने से भाग गए हैं।

हमारे घर से 50 मीटर की दूरी पर रहने वाले दैनिक जागरण के पत्रकार दिनेश सिंह दो दिन से पांडेयपुर स्थिति कोरोना वार्ड के अस्पताल में भर्ती हैं। दूसरी तरफ कालोनी के ब्लाक ए में रहने वाले पत्रकार शैलेन्द्र भारती 7 अगस्त की रात में ही घर छोड़कर कहीं चले जाने की खबर है। राकेश चतुर्वेदी के घर को भी सील कर दिया गया है। उनके परिवार के सभी सदस्य कोरोना पॉजिटिव हैं, जो घर पर ही हैं। कोरोना से डर के कारण कोई जल्दी अपने घर से बाहर नहीं निकल रहा है। लॉकडाउन के बावजूद पहले तो ऐसा माहौल कालोनी में नहीं था।

पहले सुबह-शाम कालोनी के बच्चे घर से बाहर निकल कर साइकिल वैगरह चलाकर मनोरंजन करते थे लेकिन भय के कारण अब वे घर में दुबके हैं। कोरोना वायरस का भय कितना भयावह है, इसे हम महसूस कर रहे हैं। लगता ही नहीं है कि कालोनी में कोई रहता है, जबकि 5 अगस्त से पहले ऐसा नहीं था।

अयोध्या में राममंदिर के शिलान्यास को लेकर कालोनी में काफी चहल-पहल और उत्साह का माहौल था। 3 अगस्त से ही कालोनी के पार्क में स्थित हनुमान मंदिर में चहल-पहल शुरू हो गई थी। 4 अगस्त को अखंड मानसपाठ शुरू हुआ था और 5 अगस्त को हनुमान मंदिर में पूजा हुई। टीवी का एक बड़ा स्क्रीन 3 मीटर लम्बा और 2 मीटर चौड़ा लगा था। जिस पर अयोध्या में आयोजित उत्सव का लाइव प्रसारण चल रहा था। कालोनी में जश्न का माहौल था. हनुमान मंदिर के राजपुरोहित की आवाज पर भी माहौल का असर पड़ा है। कालोनी में शनिवार की रात भी मच्छर मारने के लिए धुआं छोड़ा गया था।

कालोनी के इस उत्सवी माहौल के बीच पत्रकार राकेश चतुर्वेदी अपने घर पर विश्राम कर रहे थे, क्योंकि उनकी तबीयत कुछ दिनों से खराब चल रही थी। 5 अगस्त की शाम को वह दैनिक जागरण आफिस जाने के लिए तैयार हो रहे थे, तभी उन्हें सांस लेने में कुछ दिक्कत महसूस हुई। फौरन कालोनी में रहने वाले एक डॉक्टर को बुलाकर उनकी जांच कराई गई। प्रारम्भिक जांच के बाद ही डॉक्टर ने कहा कि इनके शरीर में आक्सीजन की मात्रा कम है। डॉक्टर की सलाह पर उन्हें तत्काल कबीरचौरा अस्पताल ले जाया गया। वहां से उन्हें उसी दिन देर रात बीएचयू अस्पताल डॉक्टरों ने रेफर कर दिया। इधर कालोनी में आयोध्या में राममंदिर शिलान्यास की खुशी में कुछ लोग अपने घर पर दीप जला रहे थे और पटाखे भी बजाए गए थे।

बीएचयू अस्पताल पहुंचने पर राकेश चतुर्वेदी तीन घंटे तक स्ट्रेचर पर ही थे। उन्हें भर्ती नहीं किया जा रहा था, क्योंकि बेड खाली नहीं था। इस दौरान उन्होंने इसकी जानकारी फोन करके अपने साथियों को दी। पत्रकार भी सक्रिय हो गए और काफी मशक्कत के बाद वे अस्पताल में भर्ती हो सके। कालोनी में रहने वाले पत्रकार संजय सिंह ने बताया कि बीएचयू अस्पताल पहुंचने के बावजूद फोन पर कई बार राकेश से बातचीत हुई थी। अस्पताल में वेंटीलेटर लगाने को लेकर भी ज़िच होती रही, क्योंकि कोई वेंटिलेटर खाली ही नहीं था, और इस अफरातफरी के माहौल में 6 अगस्त की रात 9 बजते-बजते 57 साल के पत्रकार राकेश चतुर्वेदी ने दम तोड़ दिया। जी हां, आपने सही पढ़ा 6 अगस्त की रात 9 बजते-बजते..!

उनकी मौत अपने पीछे कई सवाल छोड़ गई है, जिसका जवाब आज नहीं तो कल शासन-प्रशासन और जागरण प्रबंधन को देना ही पड़ेगा। साथी राकेश की मौत ने अयोध्या में राममंदिर के शिलान्यास से पैदा हुए माहौल को कालोनी में फीका कर दिया और अब पत्रकार कालोनी के लोग और उनके परिवार के सदस्य कोरोना वायरस के डर से घर में दुबके हैं। सच को छिपाना आसान नहीं है। उसे जितना छिपाने की कोशिश करेंगे, वह उतनी ही तेजी से सामने आकर आपको आंखें दिखाने लगेगा।

अब खबर यह है कि कोरोना से हुई मौत में बनारस ने लखनऊ को पीछे छोड़ दिया है। जिलाधिकारी के हवाले से 8 अगस्त को अखबारों में खबर छपी थी कि कोरोना से बनारस में 77 मौत हुई है। दो और मौतों के बाद कोरोना से हुई जनपद में मौत का यह आंकड़ा अब 79 हो गया है। जबकि राज्य सरकार द्वारा जारी होने वाले आंकड़े को अगर देखा जाए तो वाराणसी में अब तक कई लोगों की मौत हो चुकी है।

ताली-थाली बजाकर बनारस के लोग अब खुद अपराधबोध से ग्रसित हो गए हैं। यहां के सांसद और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कोई जादू यहां काम नहीं आ रहा है। इस सच को अपना व्यवसाय व रोजी-रोटी गवाकर खुद ही लोग महसूस कर रहे हैं। उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा हैं। अवाक हैं कि बाबा भोलेनाथ की नगरी को यह क्या हो गया है ? मुक्तिधाम की मुक्ति का जादू भी काम नहीं कर रहा है।

हम तो "हर-हर, घर-घर" करते सबका साथ और सबका विकास करने चले थे लेकिन वह सपना अब औंधे मुंह सच्चाई की दहलीज पर गिरकर बनारसियों की आंखों के सामने दम तोड़ रहा है. "विकास" की बढ़-चढ़कर डफली बजाने वाले खबरनवीसों को भी कोरोना वायरस ने अपनी जद में ले लिया है. शहर में आग लगेगी तो उसकी लपटें आपके दरवाजे तक भी पहुंचेगी. इस शहर में कोई हमारा ही घर थोड़े है।

और काशी की "इश्क़ मुबारक" पत्रकारिता

बनारस में फिलहाल राजनीति, प्रशासन, स्वास्थ्य विभाग और पत्रकारिता के बीच गलबहियां व लुकाछिपी का खेल चल रहा है, जिसे आप "इश्क मुबारक" पत्रकारिता भी कह सकते हैं. इसका सीधा सा फार्मूला है कि तुम हमारी पीठ थपथपाओ और हम तुम्हारी थपथपाते हैं।

एक दूसरे की कमियों को छिपाना और उपलब्धियों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाना इसकी पहली शर्त है। इस पत्रकारिता की नींव 2013-14 में ही पड़ गई थी लेकिन कोरोनाकाल में लॉकडाउन के दौरान इसका चेहरा साफ-साफ दिखने लगा है. "दैनिक जागरण" के पत्रकार राकेश चतुर्वेदी की मौत के बाद उठे सवालों की उपेक्षा की जा रही है.

सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि जागरण अखबार में काम करने आने वाले कर्मचारियों की थर्मल स्कैनिंग की जा रही थी कि नहीं ? इसी के जवाब में प्रबंधन द्वारा बरती जा रही लापरवाही का जवाब भी छिपा है. क्योंकि राकेश की मौत के बाद दूसरे ही दिन 7 अगस्त को जागरण में हुई जांच में 90 में 40+6 = 46 कर्मचारी कोरोना पॉजिटिव पाए गए। बीस जांच कराने से भाग गए। कई पत्रकार साथी पांडेयपुर स्थित कोरोना अस्पताल के वार्ड में अब भर्ती हैं। वहां कोरोना के इलाज की क्या सुविधा उपलब्ध है ? इस पर खबरनवीस अब भी चुप्पी साधे हैं। तो क्या "जागरण प्रबंधन" पत्रकार साथी राकेश चतुर्वेदी की मौत का इंतजार कर रहा था ?

पराड़कर भवन में 9 अगस्त को जिला प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग की पहल पर कोरोना जांच शिविर लगाया गया था, जिसमें 68 पत्रकारों की जांच हुई, जिसमें तीन पॉजिटिव पाए गए, पराड़कर भवन के दो स्टाफ और चार अन्य भी पॉजिटिव पाए गए। यह जानकारी पत्रकारों ने खुद सोशल मीडिया पर जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा की फोटो के साथ शेयर की है. सवाल यह है कि पत्रकार राकेश चतुर्वेदी की मौत से पहले पत्रकारों की कोरोना जांच के लिए इस तरह के शिविर कितनी बार लगाए गए थे ? और नहीं लगाए गए तो क्यों ? इसकी जिम्मेदारी किसकी है ? यही है काशी की "इश्क़ मुबारक" पत्रकारिता..!

बनारस के पक्कामहाल यानी पक्‍का संस्‍कृति  के ध्वस्तीकरण अभियान के दौरान भी जन सरोकार से जुड़ी खबरों को दबाने और प्रशासनिक दावे को उछालने की पत्रकारिता खूब हुई. किसी ने यह नहीं पूछा कि बस्ती में मकानों को जमींदोज करने में क्या मानक का पालन किया जा रहा है ? कितने मंदिर इस अभियान की जद में आए हैं ? मणिकर्णिका घाट की सीढ़ियों को मलबे से क्यों पाटा गया ? ललिता घाट की जादुई गली की गुफ़ा को भी मलबे से पाटा दिया गया है, जिसमें ऐतिहासिक राजराजेश्वरी मंदिर है.

150 साल पुरानी कारमाइकल लाइब्रेरी को ध्वस्त करके वहां नीरा राडिया का अस्पताल क्यों खोला गया ? जिसका उद्घाटन खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया और नीरा राडिया के साथ तस्वीरें भी खींचवाई थी. नीरा राडिया कौन हैं ? इसे तो आप जानते ही होंगे. उनके मुद्दे को कभी भाजपा के वरिष्ठ नेता खुद ही राष्ट्रीय स्तर पर उठाते थे. इन सवालों पर पत्रकार चुप्पी इसलिए साधे रहे कि वे खुद "इश्क़ मुबारक" पत्रकारिता की गिरफ्त में आ गए हैं.

बनारस में विपक्षी राजनीतिक दलों की कोई गतिविधि नहीं रह गई है. वे खुद कोमा मेंं चले गए हैं. कुछ स्वयंसेवी संगठन यानी NGO पहले आवाज उठाते थे लेकिन अब वे भी खामोश हो गए हैं. लॉंकडाउन के प्रारम्भिक दिनों में एनजीओ शहर में कुछ स्थानों पर बिस्कुट, मॉस्क, भोजन के पैकेट, कुछ आटा, गेहूं, चावल आदि बांटकर अपनी फोटो खिंचवा कर उसे अखबार व सोशल मीडिया में खूब छपवा करके अपने को संवेदनशील होने व वाहवाही लूटे थे. अब वे कहीं समाजसेवा करते हुए दिख नहीं रहे हैं. यह भी "इश्क़ मुबारक" पत्रकारिता का अच्छा उदाहरण है।

ऐसी स्थिति में "विकास" की राजनीति का बिगुल बजाने वाले दल, प्रशासनिक अधिकारी व खबरनवीसों को समाचारों के साथ खेलने का खूब मौका मिल गया जिसका परिणाम लॉकडाउन के चार माह बाद अब हमारे सामने आ रहा है. अब उसे छिपाना या उस पर पर्दा डालना मुश्किल हो गया है. ऐसी कोई चादर नहीं है, जिससे इस सच को छिपाया जा सके।

अभी भी कोई अखबार यह नहीं बता रहा है कि बनारस के कोरोना मरीजों के इलाज के लिए अस्पतालों में क्या सुविधाएं उपलब्ध हैं ? वेंटिलेटर कितना है ? स्वस्थ्यकर्मियों को कोरोना से बचाव के आवश्यक उपकरण मिल रहे हैं कि नहीं ? जबकि जिले में अब तक कोरोना से 81 लोगों की मौत हो चुकी है. व्यापारी वर्ग के लोगों की ज्यादा मौत हुई है, जिसमें 32 व्यापारी वर्ग व उनके सम्पर्की हैं. इसी तपके के लोग सबसे अधिक "हर-हर, घर-घर" करते रहे. व्यापार चौपट हो गया है. दुकानें खुल रही हैं लेकिन कोई ग्राहक नहीं हैं. लेकिन दवा के दुकानों की बिक्री अच्छी है।

बनारसी साड़ी के उद्योग से जुड़े लोगों की हालत खस्ता हो गई है. स्कूल-कालेज बंद पड़े हैं. बेरोजगारी बढ़ी है. बस, किसी तरह लोग जरूरत का सामान ही बाजार से खरीद रहे हैं. अयोध्या में 5 अगस्त के राममंदिर के शिलान्यास के बाद बन रहे "नया भारत" की तस्वीर इतनी भयावह है कि उसके बारे में सोच करके ही रोंगटे खड़े हो जा रहे हैं. इस परिप्रेक्ष्य में कोई सार्थक रिपोर्ट बनारस से प्रकाशित अखबारों में नहीं छपी है।

यह इसलिए महत्पूर्ण है कि बनारस शहर पीएम नरेन्द्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है और काशी से क्योटो बनने की प्रक्रिया में है। पत्रकारिता की वर्तमान "दशा और दिशा" पर बहस की जरूरत है. पत्रकारिता की आड़ में सत्ता की दलाली करने वालों के भरोसे हम इसे नहीं छोड़ सकते हैं. बनारस की पत्रकारिता की एक महान परम्परा रही है और उस मशाल को जलाए रखने की जरूरत है. इसमें युवा पत्रकार साथी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, क्योंकि उनके अंदर ऊर्जा है।

 


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