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  व्‍यापारी नेता द्वारा सीएम का आडियो वायरल करने से क्या 'सरकार' की नाक कट गई ?

विजय विनीत वरिष्‍ठ पत्रकार

 29/Aug/20

'बनारस की सरकार' ने शहर के एक भाजपाई व्यापारी नेता राकेश जैन को वैधानिक कार्रवाई की चेतावनी देते हुए कड़ा नोटिस भेजा है। इल्जाम यह है कि जैन‌ ने बनारस के कोविड रोगियों की मुश्किलों पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से सीधी बात करने की हिमाकत की। फिर योगीजी के साथ हुए अपने संवाद को सोशल मीडिया पर प्रसारित कर दिया। 'बनारस की सरकार' को यह बात इसलिए नागवार गुजरी कि व्यापारी नेता ने मुख्यमंत्री के समक्ष हुक्मरानों का भी कच्चा चिट्ठा खोल दिया ? उन्हें यह क्यों बता दिया कि बनारस के कुछ प्राइवेट अस्पताल वाले कोरोना मरीजों को लूट रहे हैं और 'बनारस के नौकरशाह' सिर्फ तमाशा देख रहे हैं ?

मुख्यमंत्री ने 'बनारस की सरकार' के 'कस्टोडियन' को फटकार लगाई तो वो बुरा मान गए और व्यापारी पर गोपनीयता कानून के उल्लंघन का आरोप चस्पा कर दिया। नोटिस भेजकर तीन दिन के अंदर जवाब मांग लिया। पुलिस के जरिए भेजवाई गई नोटिस में वैधानिक कार्रवाई तक का अल्टमेटम भी दिया गया है।

बनारसियों को इस बात पर अचरज है कि 'बनारस की सरकार' का कंटोप रोज-रोज क्यों उड़ जाता है ? यहां शायद ही किसी को याद होगा की दुकानों को खोलने और बंद कराने के नियम कितनी बार बदले गए ?

व्यापारी नेता ने जब मुख्यमंत्री से बातचीत का ऑडियो वायरल किया तो जवाब में 'बनारस की सरकार' ने भी धौंस-डपट वाला नोटिस वायरल करा दिया। खेल देखिए। जो नोटिस वायरल कराया गया, उस पर कलेक्टर का दस्तखत तक नहीं है। जाहिर है कि बगैर दस्तखत के कोई नोटिस किसी को जारी करने की रवायत नहीं है। अलबत्ता इसे 'हुक्मनामा' कहा जा सकता है। अवैध तरीके से अगर कोई नोटिस सोशल मीडिया पर जारी हुआ है तो गूगल पर 'फैक्ट्स चेक' कीजिए। बगैर दस्तखत वाला नोटिस किसने वायरल किया ? आरोपी आसानी से पकड़ लिया जाएगा। दूसरी बात, 'बनारस की सरकार' ने व्यापारियों की समस्याओं को हल करने के लिए जो सुनवाई पोर्टल बनवाया था, उसे आनन-फानन में डिलीट क्यों करा दिया ? वजह साफ है। जनसुनवाई पोर्टल होता तो 'बनारस की सरकार' की नाकामी की पोल खोलता? जांच से पहले ही सुबूत मिटा दिया गया। तीसरी बात, बनारस में कोविड मरीजों की जेबों पर डाका डालने वाले दो नामी अस्पतालों को 22 अगस्त 2020 से पहले नोटिस क्यों नहीं जारी किया गया ? मुख्यमंत्री से शिकायत के बाद यह कदम क्यों उठाया गया ?

समूचा बनारस जानता है कि योगी जी से व्यापारी नेता राकेश जैन ने जो बात की वो जनहित से जुड़ा मामला था। एक ईमानदार मुख्यमंत्री की स्पष्टवादिता और उनकी पारदर्शी व चमकदार नीतियों को प्रदर्शित करता था। फिर 'चोरी और सीनाजोरी' वाले अंदाज में नोटिस क्यों थमाया गया ? भाजपा नेता से जवाब-तलब करने के लिए क्या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने कोई आदेश दिया था ? अगर हां तो वह आदेश कहां है? अगर नहीं तो नोटिस पूरी तरह अर्थहीन और बलहीन है, जिसका कोई वजूद नहीं है और 'बनारस के हुक्मरान' को नोटिस भेजने का कोई कानूनी अधिकार है ही नहीं।

एक भाजपा नेता के सगे भाई संजय सिंह बनारस के जाने-माने आरटीआई एक्टिविस्ट हैं। इन्होंने शहर के उन सभी अस्पतालों की सूची हासिल कर ली है जिसमें कोरोना मरीजों का गैर कानूनी ढंग से धड़ल्ले से इलाज किया जा रहा है। ये बनारस शहर के वो अस्पताल हैं जिनके पास प्रदूषण नियंत्रण और फायर विभाग की एनओसी तक नहीं है ? यह हाल तब है जब कुछ दिन पहले ही गुजरात के एक निजी अस्पताल में आग लगने पर कोरोना के कई मरीज जिंदा जलकर मर गए थे। कोरोना के नाम पर लूटपाट का धंधा चला रहे निजी अस्पतालों के कारनामे तो ऐसे हैं, जिन्हें सुन लेंगे दिल दहल जाएगा। भारतीय समाज में आम अवधारणा है कि जनप्रतिनिधि का जीवन खुली किताब की तरह होता है, जिसमें देशहित और जनहित के अलावा किसी अन्य मुद्दों पर गोपनीयता का लवादा नहीं ओढ़ाया जा सकता है।

20 मार्च के बाद कोरोना के चलते बनारस में लाकडाउन हुआ। पांच महीने गुजर जाने के बावजूद महामारी की रोकथाम के लिए बनारस में इलाज की जरूरी बुनियादी सुविधाएं नहीं जुटाई जा सकीं। आखिर यह नाकामी किसके माथे मढ़ी जाएगी ?

बनारस में कारगर इलाज के अभाव में वरिष्ठ पत्रकार राकेश चतुर्वेदी की जान चली गई। कुप्रबंधन से क्षुब्ध कोरोना का इलाज कराने वाला नौजवान बीएचयू के अस्पताल की ऊंची इमारत से कूद गया और जान दे दी। क्या इससे 'बनारस की सरकार' की नाक नहीं कटेगी ? इस घटना से दुनिया भर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की साख पर बट्टा नहीं लगेगा? क्या मुख्यमंत्री से हुई बातचीत के आडियो के वायरल होने से ही सरकार की नाक कटती है?अनुसूचियों, भागों, अनुच्छेदों और उपबंधों से भरी संविधान की बोझिल सी किताब में गोपनीयता कानून एक साधारण सी कविता की तरह है, जिसे जरूरत पड़ने पर यदा-कदा ही पढ़ा जाता है। भारत के संविधान में कोई भी अधिकार संपूर्ण अधिकार नहीं होता है। हर अधिकार के साथ कुछ शर्तें जरूर लगी होती हैं।

हमें याद है कि जब निजता कानून पर चर्चा हो रही थी तब देश की शीर्ष अदालत ने फैसला सुरक्षित रखते हुए चिंता व्यक्त की थी कि मौजूदा प्रौद्योगिकी के दौर में निजता के संरक्षण की अवधारणा एक हारी हुई लड़ाई की तरह है। अगर देखें तो व्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार में निजता और गोपनीयता का अधिकार भी निहित है।

व्यापारी नेता राकेश जैन द्वारा वायरल किए गए ऑडियो को सुनने के बाद हमें पहली बार एहसास हुआ कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सोच की रेंज कितनी व्यापक और उदारवादी है? बनारस और बनारसियों के प्रति उनका अनुराग कितना ज्यादा है...और इस शहर के प्रति उनका नजरिया कितना पारदर्शी है? योगीजी के चिंतन में बनारस की ऐसी तरक्की दिखती है, जिसमें सामाजिक सरोकारों का प्रतिबिंबन भी झलकता है। हमें लगता है कि व्यापारी नेता ने मुख्यमंत्री की बात जन-जन तक पहुंचाने का जो तरीका खोजा वो जनहित में था। वो कोविड-19 के मरीजों को राहत पहुंचाने का एक बड़ा जरिया था और कोरोनाकाल के दौर में उसका प्रचार और प्रचार बेहद जरूरी भी था।

बनारसियों को दबंग कलेक्टर भूरेलाल आज तक याद हैं। वो होली के दिन अस्सी के बहुचर्चित कवि सम्मेलन को बंद कराने की अकड़ दिखाते हुए भारी पुलिस फोर्स के साथ पहुंचे थे और 'चकाचक बनारसी' की कविताएं सुनकर भाग खड़े हुए थे। हर किसी को मालूम है कि बनारस लड़ता भी है और लड़ाता भी है। यहां सिर्फ सांप-नेवले की लड़ाई भर नहीं होती। मुर्गा, कबूतर, तीतर-बटेर, ललमुनिया से लेकर बकरे, भैसें, ऊंट एवं बाबा की नंदी तक लड़ते और लड़ाए जाते रहे हैं। बेहतर हो कि हम फिलहाल कोविड 19 से लड़ें, अपनों से लड़ने के लिए तो पूरी जिंदगी पड़ी है...।

 


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