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बिहार में प्याला होंठों से पहले तो दूर था!

के. विक्रम राव, वरिष्ठ पत्रकार

 16/Nov/20

बिहार बच गया। चुनावी अभियान जबरदस्त था कि लालू वंश सत्तारूढ़ हो जाय। पन्द्रह वर्ष का अन्तराल जो हो गया था। राबडी देवी तो मुख्यमंत्री बन चुकी थीं तीन दशक पूर्व। वे पांचवी तक पढ़ीं हैं। तेजस्वी, उनके 31—वर्षीय पुत्र, नामित उत्तराधिकारी है। वे नौंवीं पास हैं। अगर नरेन्द्र मोदी चुनाव प्रचार कार्य में ओवरटाइम न करते तो नीतीश ने तो हथियार डाल दिये थे। वाक ओवर था। चुनाव परिणाम से यह साबित भी हो गया। विधानसभा के 243 सीटों में बमुश्किल 43 सीटें जदयू ने पायीं हैं। अब वे चौथी बार मुख्यमंत्री बनेंगे तो भाजपा की उदारता से और मोदी, अमित शाह तथा जेपी नड्डा की गठबंधन धर्म वाली वचनपूर्ति के कारण। राजनीति में ऐसा वादा निभाना ही दुर्लभ है, अदभुत है। क्योंकि नीतीश ने हार जाने में तनिक भी कसर नहीं छोड़ी थी। महागठबंधन मतगणना के वक्त कुलाचे भर रहा था, भाजपा भी गति तेज कर रही थी और 74 सीट जीतकर अकेले सबसे बड़ी पार्टी बन गयी थी। मगर जनता दल (यू) 43 सीट ही जीत पाई। तभी वह नीचे खिसकती जा रही थी। खूंटी भी नहीं गाड़ पा रही थी।

स्पष्ट हुआ कि यदि नरेन्द्र दामोदरदास मोदी दम न लगाते तो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन मुख्य विपक्ष ही बन पाता। टीवी बहस में सनसनी शुरु हो गई थी कि कौन साझा नेतृत्व का दावेदार होगा। विगत राजनीतिक स्थिति पर दृष्टि डालें तो दिखेगा कि बिहार का मुख्यमंत्री पद फुटबाल की तरह रहा है। शाट हर खिलाड़ी लगाना चाहता रहा, पर छू नहीं पाता है। मसलन आज जैसे लालू के ज्येष्ठ पुत्र तेजस्वी यादव महागठबंधन में शिल्पी बनकर मुख्यमंत्री बनतेबनते रह गये। उनकी मां राबडी देवी बिना नोटिस के मुख्यमंत्री नामित हो गईं थीं। उनकी सगी बहने जलेबी देवी, रसगुल्ला देवी और इमरती देवी तब तक काफी चर्चित हो चुकी थीं। वे समझी थीं कि यह मुख्यमंत्री का पद वंशानुगत होता है। तेजस्वी के जन्म के दो वर्ष पूर्व की घटना है। तब चारा घोटाला में पहली बार लालू यादव को पटना के बेऊर जेल जाना पड़ा। जद के प्रधानमंत्री इन्दर गुजराल ने उन्हें समझाया कि अपने किसी विश्वसनीय व्यक्ति को गद्दी सौंपे। पत्नी से अधिक विश्वसनीय कौन होगा ? सोचा होगा लालू ने। साले साहब साधू यादव कुर्सी कभी नहीं छोड़ते। तेजस्वी तब तक अवतरित नहीं हुये थे। अत: प्रधानमंत्री की राय से ही राबडी देवी मुख्यमंत्री बनी। पहला काम था उनका कि कम से कम पांच अक्षर तो सीख लें (''राबडी देवी''), हस्ताक्षर के लिए। बाकी तो सरकारी अमला संभाल लेगा।

अर्थात ऐसा ही होता यदि इस चुनाव परिणाम में महागठबंधन को बहुमत मिल जाता तब। वायदे के मुताबिक बिहार के एक नौंवी फेल मुख्यमंत्री को अनपढ़ होने के बावजूद दस लाख नौकरियों का सृजन करना पड़ता।

राबडी देवी तेजस्वी को अपने मुख्यमंत्री काल के अनुभवों से प्रशिक्षित कराने लगी थीं। क्या जोड़ी बनती! उनकी एक ही अधूरी हसरत थी कि बिहार विकसित राज्य बने। पुत्र पूरा कर देता। राबडी संवाददाताओं से कहा भी था (26 दिसम्बर 2003 : हिन्दुस्तान टाइम्स) कि यदि उनके पति प्रधानमंत्री हो जाये तो बिहार का विकास त्वरित होगा क्योंकि वे ही बिहार की ''तरक्की'' काफी कर चुकें हैं।

इस विधानसभा के निर्वाचन से आशंकित विपदा को आम भारतीय को चिन्हित करना जरुरी है। लद्दाख पर चीन का खतरा हो और बारह माओवादी कम्युनिष्ट खुले आम बिहार विधानसभा में जीतें हैं! वे चीन के माओ को अपना प्रेरक तथा अध्यक्ष मानते हैं। कोई कैसे निपटेगा उनसे?


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