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चार दिवसीय सूर्य षष्ठीन व्रत आरंभ



 19/Nov/20

हमारे देश में सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है छठ। मूलत: सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है। यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र शुक्लपक्ष षष्ठीपर मनाए जानेवाले छठ पर्वको चैती छठ व कार्तिक शुक्लपक्ष षष्ठीपर मनाए जानेवाले पर्वको कार्तिकी छठ कहा में जाता है। पारिवारिक सुख-स्मृद्धि तथा मनोवांछित फलप्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है। इस पर्वको स्त्री और पुरुष समानरूप से मनाते हैं। छठ व्रत के संबंध में अनेक कथाएं प्रचलित हैं; उनमें से एक कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। तब उसकी मनोकामनाएं पूरी हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिल गया। लोकपरंपरा के अनुसार सूर्य देव और छठी मइया का संबंध भाई-बहन का है। लोक मातृका षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की थी।

छठ पर्व की परंपरा में बहुत ही गहरा विज्ञान छिपा हुआ है, षष्ठी तिथि (छठ) एक विशेष खगौलीय अवसर है। उस समय सूर्य की पराबैगनी किरणें (ultra violet rays) पृथ्वी की सतहपर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं। उसके संभावित कुप्रभावों से मानव की यथासंभव रक्षा करने का सामर्थ्य इस परंपरा में है। पर्वपालन से सूर्य (तारा) प्रकाश (पराबैगनी किरण) के हानिकारक प्रभाव से जीवों की रक्षा संभव है। पृथ्वी के जीवोंको इससे बहुत लाभ मिल सकता है।

सूर्य के प्रकाश के साथ उसकी पराबैगनी किरण भी चंद्रमा और पृथ्वीपर आती हैं। सूर्य का प्रकाश जब पृथ्वीपर पहुंचता है, तो पहले उसे वायुमंडल मिलता है। वायुमंडल में प्रवेश करनेपर उसे आयन मंडल मिलता है। पराबैगनी किरणों का उपयोग कर वायुमंडल अपने ऑक्सीजन तत्त्वको संश्लेषित कर उसे उसके एलोट्रोप ओजोन में बदल देता है। इस क्रियाद्वारा सूर्य की पराबैगनी किरणों का अधिकांश भाग पृथ्वी के वायुमंडल में ही अवशोषित हो जाता है। पृथ्वी की सतहपर केवल उसका नगण्य भाग ही पहुंच पाता है। सामान्य अवस्था में पृथ्वी की सतहपर पहुंचनेवाली पराबैगनी किरण की मात्रा मनुष्यों या जीवों के सहन करने की सीमा में होती है। अत: सामान्य अवस्था में मनुष्योंपर उसका कोई विशेष हानिकारक प्रभाव नहीं पडता, बल्कि उस धूपद्वारा हानिकारक कीटाणु मर जाते हैं, जिससे मनुष्य या जीवनको लाभ ही होता है।

छठ जैसी खगौलीय स्थिति (चंद्रमा और पृथ्वी के भ्रमण तलों की सम रेखा के दोनों छोरोंपर) सूर्य की पराबैगनी किरणें कुछ चंद्र सतह से परावर्तित तथा कुछ गोलीय अपवर्तित होती हुई, पृथ्वी पर पुन: सामान्य से अधिक मात्रा में पहुंच जाती हैं। वायुमंडल के स्तरों से आवर्तित होती हुई, सूर्यास्त तथा सूर्योदयको यह और भी सघन हो जाती है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार यह घटना कार्तिक तथा चैत्र मास की अमावस्या के छ: दिन उपरांत आती है। ज्योतिषीय गणनापर आधारित होने के कारण इसका नाम और कुछ नहीं, बल्कि छठ पर्व ही रखा गया है।

छठ पर्व किस प्रकार मनाते हैं ?

यह पर्व चार दिनों का है। भैयादूज के तीसरे दिन से यह आरंभ होता है। पहले दिन सैंधा नमक, घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दू की सब्जी प्रसाद के रूप में ली जाती है। अगले दिन से उपवास आरंभ होता है। इस दिन रात में खीर बनती है। व्रतधारी रात में यह प्रसाद लेते हैं। तीसरे दिन डूबते हुए सूर्यको अर्घ्य यानी दूध अर्पण करते हैं। अंतिम दिन उगते हुए सूर्यको अर्घ्य चढ़ाते हैं। इस पूजा में पवित्रता का ध्यान रखा जाता है; लहसून, प्याज वर्ज्य है। जिन घरों में यह पूजा होती है, वहां भक्तिगीत गाए जाते हैं। आजकल कुछ नई रीतियां भी आरंभ हो गई हैं, जैसे पंडाल और सूर्यदेवता की मूर्ति की स्थापना करना। उस पर भी रोषनाईपर काफी खर्च होता है और सुबह के अर्घ्य के उपरांत आयोजनकर्ता माईकपर चिल्लाकर प्रसाद मांगते हैं। पटाखे भी जलाए जाते हैं। कहीं-कहींपर तो ऑर्केस्ट्रा का भी आयोजन होता है; परंतु साथ ही साथ दूध, फल, उदबत्ती भी बांटी जाती है। पूजा की तैयारी के लिए लोग मिलकर पूरे रास्ते की सफाई करते हैं।


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