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गंगा में ग्रीन फ़ंगस यानी काई

सुरेश प्रताप (वरिष्ठर पत्रकार )

 26/May/21

उड़ता बनारस

गंगा में दशाश्वमेध से लेकर पंचगंगा घाट तक पसरी काई, जिसे आप ग्रीन फ़ंगस भी कह सकते हैं, नमामि गंगे प्रोजेक्ट की सफलता का प्रमाण है..! गंगा की धारा में काई के कारण पानी का रंग अब हरा हो गया है। गंगाजल रंग बदल रहा है।

फिलहाल लोग कोरोना वॉयरस से परेशान हैं और अब कोरोना के साथ ब्लैक, ह्वाइट और येलो फंगस के प्रकोप की खबरें भी आ रही हैं। दूसरी तरफ कहा जा रहा है कि कोरोना की तीसरी लहर भी आने वाली है, जिसकी चपेट में बच्चों के आने की आशंका व्यक्त की जा रही है। प्रशासन अभी से तीसरी लहर का मुकाबला करने की तैयारी में जुट गया है । दूसरी कब खत्म होगी ?  पता नहीं..! इस बीच बिगत दस दिनों से गंगा की धारा में पसरी हरे रंग की काई, जिसे आप "ग्रीन फ़ंगस" भी कह सकते हैं, भविष्य में आने वाले खतरे का संकेत है।

गंगा को प्रदूषण मुक्त करने की कवायद का प्रतीक है, काई..! नदी में काई, वह भी गंगा की धारा में शायद ही कभी किसी ने देखा हो। गंगा किनारे घाट पर रहने वाले सरदार रामसजीवन जिनकी उम्र लगभग 75 साल है उनका का कहना है कि अपने जीवन में उन्होंने कभी काई नहीं देखी थी। काई उस स्थान पर स्वत: पैदा हो जाती है, जहां पानी में ठहराव हो। जैसे गड़ही और तालाब..! लेकिन नदियां तो बहती रहती हैं। उसमें काई का अभिप्राय है कि गंगा की धारा का बहाव रुक गया है।

आश्चर्य की बात है कि असि नदी, जो अब नाले में तब्दील हो गई है, में काई नहीं है। जानते हैं क्यों ? हम बताते हैं। घरों का सीवर जो सीधे असि नदी में गिरने के कारण यह नाला बन तो गया लेकिन इसमें गति है और गति के कारण ही इस नाले में काई नहीं है। यह नदी पहले अस्सीघाट पर गंगा में मिलती थी, लेकिन नाले की धारा को मोड़ कर उसकी धारा ही बदल दी गई। अब अस्सी नाला गंगा में जहां मिलता है, वहां उसके बगल में ही संत रविदास घाट बन गया है। यहीं रविदास पार्क भी है। काशी में संत रविदास को नाले के पास जगह मिली। उल्लेखनीय है कि 2020 में देवदीपावली देखने जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बनारस आए थे तो संत रविदास पार्क में भी दर्शन-पूजन करने गए थे।

असि नाले की धारा को बदलने का परिणाम यह हुआ कि अस्सीघाट की सीढ़ियों को छोड़कर गंगा लगभग दो सौ मीटर आगे खिसक गई हैं। रीवां और तुलसीघाट का किनारा भी छोड़कर गंगा आगे खिसक गई हैं। इसी घाट पर काशी की प्रसिद्ध नागनथैय्या लीला होती है। इसे लखी मेला भी कहते हैं।

यहां यह बताना जरूरी है कि 2014 में बनारस से चुनाव जीतने के बाद प्रधानमंत्री जब काशी आए तो अस्सीघाट पर ही फावड़ा से घाट के किनारे जमी मिट्टी खोदे थे। ऐसा उन्होंने इसलिए किया था कि गंगा को प्रदूषण मुक्त करने की कवायद को गति दी जा सके। नमामि गंगे प्रोजेक्ट को सात साल में हम कहां से कहां पहुंचा दिए, उसका परिणाम है दशाश्वमेध से पंचगंगा घाट तक दो किलोमीटर के दायरे में गंगा के ऊपर पसरी काई (ग्रीन फंगस) ! जिससे गंगाजल का रंग हरा हो गया है।

इसके लिए काफी मेहनत करनी पड़ी है। मीरघाट, ललिताघाट, जलासेन और मणिकर्णिका श्मशान के सामने गंगा की धारा को बालू और मुक्तिधाम के मलबे से पाटना पड़ा है। यह कवायद जनवरी, 2020 में ही शुरू हो गई थी। डेढ़ साल तक गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के अथक परिश्रम के बाद आज काशीवासी गंगा में काई का दर्शन कर रहे हैं। तब किसी ने आवाज नहीं उठाई कि क्यों गंगा की धारा में बालू और मसबा डाला जा रहा है ? चुप्पी पसरी थी। यह मौम अब भी बरकरार है। नमामि गंगे..!

 

 


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