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जर्मनी की दवाई से गंगा में शैवाल की सफाई

वरिष्‍ठ पत्रकार (सुरेन्‍द्र प्रताप सिंह)

 14/Jun/21

काशी में गंगा की धारा में लगभग 25 दिनों से लगी काई व शैवाल की सफाई अब जर्मनी की तकनीक से निकालने की कोशिश की जा रही है। नमामि गंगे के दिल्ली के अधिकारियों के निर्देश पर ऐसा किया जा रहा है। 13 जून को सुबह घाट किनारे इस रसायन का छिड़काव भी किया गया। अधिकारियों के मुताबिक जलीय जीवों के लिए यह रसायन हानिकारक नहीं है।

अखबारों में छपी खबर के मुताबिक रविवार को बायो रेमेडिएशन पद्धित से दशाश्वमेध घाट के आसपास 100 मीटर के दायरे में इस रसायन का छिड़काव किया गया। मानमंदिर घाट, दरभंगा घाट, चौसट्टी घाट, डॉ. राजेंद्र प्रसाद घाट तक दवा का छिड़काव किया गया. टीम का दावा है कि घाटों के किनारे रविवार को सुबह छिड़काव के कुछ घंटों में असर दिखा और पानी का रंग हल्का हरा हो गया। अब पानी की जांच होगी.

नमामि गंगे प्रोजेक्ट के रिसर्च ऑफिसर नीरज गहलावत का कहना है कि जर्मनी की एल्गी ब्लूम ट्रीटमेंट प्रणाली के तहत गंगा में बायो रेमेडिएशन से तैयार घोल का छिड़काव कराया गया है। छिड़काव के दौरान प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी भी मौजूद थे।

डीएम की जांच टीम का दावा और शैवाल

बनारस के जिलाधिकारी कौशलराज शर्मा ने जो पांच सदस्यीय टीम गठित की थी, उसका दावा है कि काशी में घाट के किनारे जो शैवाल है, वह विंध्याचल में लगे एसटीपी से आया है. जांच टीम ने अपनी रिपोर्ट डीएम को सौंप दी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मिर्जापुर शहर से आंशिक एवं चुनार से निकलने वाला मलजल बिना शोधित किए गंगा में गिर रहा है। जांच टीम ने मिर्जापुर के अफसरों पर कार्रवाई की संस्तुति भी की है।

सवाल यह है कि जब डीएम द्वारा गठित जांच टीम ने शैवाल पैदा होने के श्रोत का पता लगा ही लिया है तो उसी जगह जर्मनी के रासायनिक घोल का छिड़काव भी किया जाना चाहिए ताकि वहां से बनारस में काई-शैवाल के आने की प्रक्रिया ही समाप्त हो जाए।

यदि गंगा की धारा में बहाव है तो उसके साथ दवाई का घोल भी बहेगा. ऐसी स्थिति में जर्मनी की दवाई बनारस में कितना कारगार साबित होती है, इसकी जानकारी भी कुछ दिनों में मिल जाएगी। रही बात गंगा के पानी के हरे रंग का होने का तो वह तो है ही। अब यह देखना है कि जर्मनी की दवाई घाट किनारे शैवाल को समाप्त करने में कितना असरदार होती है। इस सवाल का जवाब भी कुछ दिनों में मिल जाएगा।

एक और सवाल क्या बनारस में गिरने वाला सीवर का मलजल पूरी तरह से शोधित होता है ? क्योंकि जांच टीम का कहना है कि विंध्याचल में शोधित जल गंगा में न गिरने के कारण ही शैवाल पैदा हुआ और काशी में गंगा का रंग हरा हो गया है. वैसे अब दवाई शुरू हो गई है तो विश्वास है कि जल्दी ही जर्मनी की दवाई का असर भी लोगों को देखने को मिलेगा।

 


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