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बदलती मीडिया. उड़ता बनारस

सुरेश प्रताप
वरिष्ठ पत्रकार
 16/Oct/18

आसमान से देखो, पानी या धरती से देखो, जैसे चाहो वैसे देखो "क्योटो" का नज़ारा !!

ऋषिकेश के लक्ष्मण झूला की तरह गंगा, पर "विश्वनाथ झूला" का भी लें आनंद !!

बदलते बनारस और इसका "विकास" यदि आपको देखना है, तो आसमान, पानी और धरती जहां से इच्छा हो इसे देख सकते हैं. यदि बनारस को देखना है, तो घोड़ा-गाड़ी की बग्घी यानी तांगा का लुत्फ उठा सकते हैं. शहर के सभी प्रमुख चौराहे पर इसकी व्यवस्था रहेगी. इसे आप "अश्वरथ" भी कह सकते हैं. या मणिकर्णिका से डोमरी तक गंगा पर ऋषिकेश के लक्ष्मण झूला की तर्ज पर बनने वाले "विश्वनाथ झूला" का आनन्द भी उठा सकते हैं.

और यदि काशी के क्योटो का आनन्द लेना चाहते हैं, तो ओपन हेलीकाप्टर (पैरामोटर) से आसमान में उड़ सकते हैं. इससे सुबह-ए-बनारस और आरती का नजारा देख सकते हैं. इसका शुल्क काशीवासियों की सुविधा के लिए सिर्फ 2500 रुपये रखा गया है. ताकि शहर के मतदाता इसका लाभ उठा सकें ! सस्ते में !

और यदि पानी की लहरों के बीच से क्योटो को देखना-समझना चाहते हैं, तो उसके लिए गंगा की धारा में बोट पैरासोलिंग की व्यवस्था की गई है. इसका शुल्क सिर्फ 1200 रुपये है. रोमांचकारी एडवेंचर स्पोर्टस में जेटस्की के लिए प्रति व्यक्ति 500 रुपये, बनाना राइड के लिए 350, बम्पी राइड के लिए 350 और हाई स्पीड बोट के लिए सिर्फ 300 रुपये शुल्क लगेगा. अब यह मत कहना कि बनारस में "विकास" की रोशनी नहीं पहुंची है. इसकी आनलाइन बुकिंग होगी.

आसमान और पानी की लहरों पर अटखेलियां करते हुए "काशी के क्योटो" का आनन्द ही कुछ और है. उसका अपना अलग मजा है. कहते हैं कि बनारस को सीधा देखो तो उल्टा नजर आता है और उल्टा देखो तो सीधा ! यह शहर आधा पानी में है और आधा पानी के बाहर ! इसीलिए पानी से देखने पर इसका रूप जो नज़र आता है, वह आसमान से देखने पर बदल जाता है. और धरती से एक दम अलग असली बनारस दिखाई पड़ता है.

बचपन में जब तकनीक का इतना विकास नहीं हुआ था, तब आप बाइस्कोप देखे होंगे. सिर पर बाइस्कोप का डिब्बा लादे बाइस्कोप वाला गांव-गली में आवाज लगाते घूमता था. कहता था "देखो-देखो आगरा का ताजमहल देखो, लखनऊ की भूलभुलैया देखो या दिल्ली का कुतुबमीनार देखो..."! और बच्चे बाइस्कोप देखने के लिए दौड़ते हुए उसके पास पहुंच जाते थे. तब बहुत मजा आता था.

अब वही बाइस्कोप बदले हुए समय में टेक्नोलाजी के विकास के कारण बनारस आ गया है. अब काशी के क्योटो का "विकास" आप आसानी से आसमान, पानी और धरती से जहां से मन करे देखकर उसका लुत्फ उठा सकते हैं. पक्कामहाल के सुन्दरीकरण, विश्वनाथ मंदिर कारिडोर और गंगा पाथवे का अवलोकन भी आप ओपन हेलीकाप्टर से मात्र 2500 रुपये में आसमान से कर सकते हैं. "बदलता बनारस" की इस रामलीला का दर्शन यहां से प्रकाशित अखबार आजकल खूब दिखा रहे हैं. उसकी तस्वीरें छाप रहे हैं. गुणगान कर रहे हैं और इस बदले स्वरूप का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं.

किसी भी शहर का विकास आपको देखना है, तो उसका पहला मानक "हवा और पानी" है. यह कितना शुद्ध या प्रदूषित है, इसी के आधार पर हम कह सकते हैं कि विकास कहां खड़ा है या हुआ है ! जिन्दगी के लिए सबसे अधिक जरूरी हवा और पानी है. इसके अभाव में जीवन के लिए ही संकट पैदा हो जाएगा! लेकिन इस मुद्दे पर मीडिया चुप्पी साधे है.

आखिर मीडिया की यह जिम्मेदारी नहीं है कि वह बताए कि हमारे "विकसित" शहर में हवा-पानी मानक के अनुरूप है कि नहीं? लेकिन वो इसे नहीं बताएंगे. आखिर इतने नर्सिंग होम काशी के क्योटो में क्यों खुल रहे हैं? इस शहर के किसी भी क्षेत्र में प्रत्येक 400-500 मीटर की दूरी पर आपको नर्सिंग होम मिल जाएंगे. जाहिर सी बात है कि नर्सिंग होम को स्वस्थ नहीं बीमार आदमी की जरूरत है. यानी "बीमारी" बदलते बनारस में एक बड़ी इंडस्ट्री के रूप में विकसित हो रही है. समाज में जितना ही लोग बीमार होंगे, तो नर्सिंग होम उतने ही विकसित होंगे. और बीमारी का मुख्य कारक प्रदूषित हवा-पानी है. इस दिशा में सकारात्मक पहल कितनी हो रही है या नहीं हो रही है? यह बताने की जिम्मेदारी मीडिया की है. लेकिन इसे वो नहीं बताएंगे! अभी मीडिया "विकास की परिकथा" बताने में व्यस्त है.


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