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अमन-चैन की दुआ संग मनाया गया लौंदा गांव में जश्न-ए-ईद मिलादुन्नबी



 20/Oct/21

जश्न-ए-ईद मिलादुन्नबी (बारावफात) का त्योहार ग्रामीण क्षेत्रों में मंगलवार को उत्साह के साथ मनाया गया।वहीं अलीनगर थाना क्षेत्र के मख़दुमाबाद लौंदा गाँव में अंजुमन मख़दुमिया इस्लामिया इत्तेहादे मिल्लत कमेटी की ओर से पैगम्बर- ए- इस्लाम की पैदाइश यानि ईद मिलादुन्नबी कोरोना गाइडलाइन को देखते हुए बहुत ही सादगी के साथ मनाया गया। गाँव में मुस्लिम इलाकों में सरकार की आमद मरहबा के नारे बुलन्द हो रहे थे तो मस्जिदें और रास्ते दुल्हन की तरह बिजली की झालरों से सजाए गए थे।

इसके अलावा गाँव के दिग्घी, बसीला, लौंदा,शकुराबाद, मलोखर, आलमपुर, दुलहीपुर, पड़ाव, सुजाबाद बहादुरपुर, सेमरा, कटेसर, नाथुपूर, रामनगर, मुगलसराय, रेमा, कुंडा कला, समेत इलाकों में भी ईद मिलादुन्नबी के जलसों का सिलसिला चला। इन इलाकों को भी हरी झण्डियों से सजाया गया था। सड़कें और मस्जिदें बिजली की झालरों से सजाई गई थीं।

अंजुमन मख़दुमिया इस्लामिया इत्तेहादे मिल्लत कमेटी की ओर से ईद मिलादुन्नबी का दिन मंगलवार को जामा मस्जिद स्थित कोट पर संरक्षक खुर्शीद प्रधान, सदर हाजी एहतेशाम अली, हाजी सरफुद्ददीन सफ्फू, जनरल सेक्रेटरी सद्दाम हुसैन व खजांची मोजीब मिल्की बाबू की निगरानी में प्रोग्राम को मुकम्मल किया गया। इस मौके पर बच्चे हाथों में इस्लामिक झण्डे उठाए मरहबा, सरकार की आमद मरहबा का नारा बुलन्द कर रहें थें। मिलाद में बच्चों की टोलियां थीं जो नात पढ़ रहे थे।

नात- ऐ-पाक की शुरुआत सदर हाजी एहतेशाम साहब के रवायती नातिया कलाम से हुई। इसके बाद हाजी नुरूल हक, हाफीज शाहिद अंसारी, मोनीष मखदुमाबादी, मो साकिब पढ़ी व रात में मौलाना अशरफ रज़ा क़ादरी ने तकरीर की। उनकी तकरीर पैगम्बर साहब की पैदाइश और इस्लामी तालीमात के सिलसिले पर आधारित रही। मिलादुन्नबी में मुल्क और कौम की सलामती के लिये दुआ मांगी जाती है।

 इतिहास

मक्का में जन्म लेने वाले पैगंबर मोहम्मद साहब का पूरा नाम पैगंबर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम था। उनकी माताजी का नाम अमीना बीबी और पिताजी का नाम अब्दुल्लाह था। वे पैग़ंबर हजरत मोहम्मद ही थे जिन्हें अल्लाह ने सबसे पहले पवित्र कुरान अता की थी। इसके बाद ही पैग़ंबर साहब ने पवित्र कुरान का संदेश जन-जन तक पहुंचाया। हजरत मोहम्मद का उपदेश था कि मानवता को मानने वाला ही महान होता है।

 क्या है महत्व

पैग़ंबर हजरत मोहम्मद के जन्मदिन अथवा जन्म उत्सव को ईद-ए-मिलाद-उन-नबी के रूप में मनाया जाता है। ईद-ए-मिलाद-उन-नबी पर रातभर के लिए प्रार्थनाएं होती हैं और जुलूस भी निकाले जाते हैं। इस दिन इस्लाम को मानने वाले हजरत मोहम्मद के पवित्र वचनों को पढ़ा करते हैं। लोग मस्जिदों व घरों में पवित्र कुरान को पढ़ते हैं और नबी के बताए नेकी के रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित होते हैं। पैगंबर हजरत मोहम्मद के जन्मदिवस पर घरों को तो सजाया ही जाता है, इसके साथ ही मस्जिदों में खास सजावट होती है। उनके संदेशों को पढ़ने के साथ-साथ गरीबों में दान देने की प्रथा है। दान या जकात इस्लाम में बेहद अहम माना जाता है। मान्यता है कि जरूरतमंद व निर्धन लोगों की मदद करने से अल्लाह प्रसन्न होते है।

दुआ खानी व मिलाद मे खुर्शीद प्रधान, अफसर अहमद अंसार अहमद, फिरोज अहमद एडवोकेट, कुद्दूश अहमद कल्ला, मो असलम, सद्दाम हुसैन, डाॅ तारीख, अजीम अहमद पिंटू, इर्शाद अहमद, फैज अहमद कैशपी, तमशीर मिल्की सिब्बल, हारीश अहमद, मामुन रशीद, अब्दुल खालीक, तौफिक अहमद रानू वकील, एकलाख "बाबा", अफरोज अहमद छोटे, अमजद जमाल शाबरी उर्फ शेरा, हारून, सैजू, मो आजम, मुख्तार अप्पू, इंसाफ अहमद, अबूलैश पप्लू, डा. आकिब, आतीफ मिल्की, फैजान उर्फ गोलू साकिब, हेशामुददीन पप्पू अनस आदि लोग शामिल हुए।


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