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हृदय को रखना है स्वस्थ तो दांतों को रखें साफ : प्रो. टीपी चतुर्वेदी



 22/Nov/18

दांत प्रकृति की दी हुई एक खूबसूरत संरचना है। जिसके बिना शायद भोजन भी बेस्वाद हो जाए। दांत किसी भी जीव के लिये अत्यधिक महत्वपूर्ण है, लेकिन इनकी देखभाल व रख-रखाव का ठीक से ध्यान नहीं रखने पर शरीर के कई अंदरूनी अंगों को भी नुकसान हो सकता है। दांतों की बीमारियों से संबंधित व उनकी देखभाल के बारे में क्लाउन टाइम्स ने उत्तर प्रदेश डेन्टल एसोसिएशन के अध्यक्ष व बीएचयू ट्रॉमा सेंटर के हेड प्रो. टीपी चतुर्वेदी व ऑल इंडिया डेन्टल एसोसिएशन के वाइस प्रेसीडेंट डॉ. मनोज श्रीवास्तव से खास बातचीत की।

बातचीत के दौरान डॉ. टीपी चतुर्वेदी ने बताया कि ज्यादातर लोग पायरिया की बीमारी से ग्रस्त रहते हैं। हर घर 10 में से 7 लोगों को पाइरिया की समस्या है, इसके अलावा दांतों में सड़न बच्चों में टेढ़े-मेढ़े दांतो की समस्या आम है। साथ ही उन्होंने कहा कि आम तौर पर लोग दांतों की समस्या को गंभीरता से नहीं लेते लेकिन दांतों की समस्या से शरीर के कई अन्य अंग जैसे हार्ट-लंग्स, पेट की क्रोनिक बीमारियां जैसे अल्सर, लंग्स में इनफेक्‍शन यहां तक की हार्ट-फ्लेयर की समस्या भी हो सकती है।

उनका कहना था कि मुँह शरीर का गेट-वे है। यहाँ से शरीर की अन्य अंगों में खाने की वस्तुओं या इनफेक्शन द्वारा बैक्टीरिया का प्रवेश होता है, जिससे शरीर में अन्य अंग प्रभावित होते हैं। उप्र डेन्टल एसोसिएशन के अध्यक्ष के नाते उनका कहना था कि हमारी एसोसिएशन समय-समय पर रूरल एरिया में कैम्प के माध्यम से लोगों को दांतों व मुँह के संक्रमण के बारे में अवेयर करते रहते हैं। साथ ही ग्रामीणों का इलाज भी करते हैं। यहाँ तक की इन्टर्न के स्टूडेन्ट के लिये ग्रामीण क्षेत्रों में काम करना अनिवार्य है। जो कि उनकी ट्रेनिंग का हिस्सा है। डॉ. चतुर्वेदी का मानना है कि शहरों में फिर भी जागरूकता है, संभव इलाज मुहैया है। लेकिन ग्रामीण इलाके में जानकारी का अभाव तो है ही साथ ही इलाज की भी कमी है। पायरिया की क्रोनिक बीमारी बताते हुए उन्होंने कहा कि ठीक तरह से दांतों के चारों तरफ की सफाई न हो पाना ज्यादा स्टिकी, चिपकने वाले पदार्थों का ज्यादा सेवन के कारण पायरिया की बीमारी आम है।

ट्रामा सेंटर के दंत विभाग की उपलब्धता बताते हुए उन्होंने कहा कि यहां अत्याधुनिक मशीनों द्वारा दांतों की सफाई, डेन्टल केरिज की फिलिंग, जबड़ों का इलाज व टेढ़े-मेढ़े दांतों का इलाज उपलब्ध है। उन्होंने बताया कि आजकल बच्चों में टेढ़े-मेढ़े दांतों की समस्या आम है जिसके इलाज के लिये पहले लखनऊ का रूख करना होता था। लेकिन अब इसका इलाज ट्रामा सेंटर के दंत विभाग में उपलब्ध है।

दांतों के खर्चीले इम्प्लांट के बारे में पूछे जाने पर उनका कहना था कि आधुनिक तकनीक द्वारा मेटिलिक डेन्चर की इन्सर्ट करके फिक्स दांत लगाए जाते हैं। क्योंकि दांत टाइटेनिक धातु के बने होते हैं और मेनुफेक्चर विदेशी कम्पनियां है। इस कारण खर्च 10 से 15 हजार एक दांत पर आता है लेकिन हमारा विभाग रिसर्च कर रहा है। जिसके बाद यह खर्च पाँच से आठ सौ रूपये आएगा।

दांतों को स्वस्थ रखने के उपायों के बारे में डॉ. साहब का कहना था कि स्टिकी चीजों का जहां तक हो सेवन ना करें। यदि करें तो दांतों की सफाई का ज्यादा ध्यान दें। फास्ट फूड व धूम्रपान का सेवन न करें। साथ ही मेडिकेटेड पेस्ट का ही इस्तेमान करें क्योंकि आज कल बाजार में आने वाले कई ब्रान्डेड पेस्ट व पाउडर में कैल्सियम कार्बोनेट के एम्ब्रेजी (खुरदरे व नुकीले पदार्थ) की मात्रा अधिक होती है जो दांतों की परत को काफी नुकसान पहुचाती है। टुबैको प्रोडक्ट का इस्तेमाल कत्तई नहीं करना चाहिये जिससे कैंसर की बीमारी तक हो सकती है। एक जांच में पता चला है कि पिछले वर्ष की तुलना में भारत में मुंह के कैंसर में 114 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है।

काबिल दंत चिकित्सक के परामर्श से दांतों की ही नहीं बल्कि हार्ट की बीमारी से सकता है बचाव : डॉ. मनोज श्रीवास्‍तव

ऑल इंडिया डेन्टल एसोसिएशन के वाइस चेयरमैन डॉ. मनोज कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि आम तौर पर दांतों में कीड़ा लगना मसूड़ों से खून आना दांतों में सेंसिटिविटी (ठंडा-गरम लगना) मुँह का कम खुलना कैंसर व टेढ़े-मेढ़े दांतों की समस्या देखने को मिलती है। बचपन में गलत ईटिंग हैबिट, डब्बा बन्द खाद्य पदार्थों के सेवन के कारण दांतों की समस्या तेजी से फैलती है। दांतों के टेढ़े होने की समस्या का एक कारण और है कि बच्चों को ज्यादा समय तक फीडिंग बॉटल से फीड कराना। उन्होंने कहा कि दांतों की समस्या से निजात के लिये फाइबर वाले खाद्य पदार्थों का ज्यादा इस्तेमाल, चने या ज्यादा चबाए जाने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिये, जिससे दांतों की एक्सरसाइज के जाय ही नैचुरल सफाई भी हो सके।

किसी कारणवश दांतों से खून आने, ठंडा-गरम लगने, सड़न व कीड़ा लगने की शिकायत पर तुरन्त काबिल दंत चिकित्सक के परामर्श ले कर सिर्फ दांतों की ही नहीं बल्कि हार्ट की बीमारी से भी बचा जा सकता है। साथ ही उन्होंने कहा खुरदुरे मंजन ज्यादा पिपरमिंट वाले पेस्ट का इस्तेमाल कभी ना करें। इम्प्लान्ट के बारे में डॉ. श्रीवास्तव का भी यही मानना है कि विदेशी कम्पनियों द्वारा तैयार किये जाने व टाइटेनियम धातु के इस्तेमाल के कारण ही दांत इम्पलान्ट कराने का खर्च काफी अधिक है। लेकिन बीएचयू ट्रॉमा सेंटर के दंत रोग विभाग में रिसर्च चल रही है जिसके बाद इस खर्च में काफी कमी आयेगी। अंत में उन्होंने बताया कि सड़क पर बैठे दांतों का इलाज करने वालों से सावधान रहें व टुथ ब्रश को स्टैरेलाइज जरूर करें।


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