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बच्चों के लिए शुरू के हजार दिन होते हैं स्वस्थ जीवन का आधार : सीएमओ डॉ. संदीप चौधरी



 04/Apr/22

जिले में 3914 आंगनबाड़ी केंद्रों के जरिये प्रदान की जा रहीं सेवाएं : स्वाति डीपीओ

बच्चों का सम्पूर्ण टीकाकरण कराएँ,बीमारियों से बचाएं : डॉ. वी. एस. राय

बच्चे को जन्म के पहले घंटे में जरूर कराएँ स्तनपान : डॉ. ए. के. मौर्य


वाराणसी में पोषण पखवाड़ा के समापन पर सोमवार को सेंटर फार एडवोकेसी एण्ड रिसर्च (सीफार) के सहयोग से बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार विभाग के तत्ववाधान में पोषण संचार पर मीडिया संवेदीकरण कार्यशाला आयोजित हुई। कार्यशाला के मुख्य अतिथि मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. संदीप चौधरी ने कहा कि बच्चों के शुरू के हजार दिन ही उनके स्वस्थ जीवन के आधार बनते हैं। इसलिए जरूरी है कि गर्भ में आते ही सबसे पहले गर्भवती के बेहतर स्वास्थ्य की देखभाल और सही पोषण का ध्यान रखा जाए ताकि गर्भावस्था के 270 दिन मां से बच्चे को सही खुराक मिलती रहे। इसके बाद शुरू के दो साल यानि 730 दिन बच्चे के पोषण का हर स्तर पर ख्याल रखना जरूरी होता है, क्योकि जब बच्चा स्वस्थ होगा तभी वह आगे चलकर स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकेगा।

डॉ. चौधरी ने कहा कि पोषण को ध्यान में रखते हुए स्वास्थ्य विभाग द्वारा कई योजनाएं संचालित की जा रही हैं। इसमें पहली बार गर्भवती होने वाली महिलाओं के बेहतर स्वास्थ देखभाल एवं सही पोषण के लिए प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना संचालित कीजारहीहै, जिसके तहत गर्भवती को तीन किस्तों में पांच हजार रूपए दिये जाते हैं। ताकि वह खुद के साथ अपने बच्चे के बेहतर पोषण का ख्याल रख सके।

कार्यशाला में जिला कार्यक्रम अधिकारी डीके सिंह ने आंगनवाड़ी केन्द्रों के माध्यम से गर्भवती व छोटे बच्चों को स्वस्थ बनाने के लिए चलायी जा रही योजनाओं के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि पोषण पखवाड़ा (21मार्च से चार अप्रैल तक) के दौरान आंगनबाड़ी केंद्र पर पंजीकृत बच्चों का वजन और लंबाई का मापन किया गयाऔर उनके पोषण स्तर की पहचान कर उचित प्रबंधन किया जा रहा है। जिले के समस्त शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में गर्भवती धात्री महिलाओं, जन्म से छह वर्ष तक के बच्चों और किशोरी बालिकाओं तक पोषण एवं स्वास्थ्य सेवाएं 3914 आंगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से प्रदान की जा रही हैं। एक आंगनबाड़ी केंद्र लगभग 1000 आबादी से आच्छादित होता है। वर्तमान में जनपद में आंगनबाड़ी केंद्रों पर शून्य से छह वर्ष के 421551 बच्चे, 80279 गर्भवती/धात्री महिलाएं और 2588 स्कूल न जाने वाली 11 से 14 वर्ष की किशोरियां आंगनबाड़ी केंद्रों पर पंजीकृत हैं। उन्होंने कहा कि बच्चों में कुपोषण का चिन्हांकन एक बड़ी चुनौती है जिससे निपटने के लिए आंगनबाड़ी केंद्रों पर ग्रोथ मॉनिटरिंग डिवाइसेज (इन्फैंटोमीटर स्टेडियोमीटर और वजन मशीन) उपलब्ध कराए गए हैं जिनसे बच्चों की लंबाई ऊंचाई और वजन की माप करके उनके पोषण स्तर की जानकारी की जाती है। वर्तमान में जनपद में शून्य से पांच वर्ष के कुल 359424 बच्चे हैं जिनके गत माह किए गए वजन के आधार पर 52374 बच्चे (लगभग 15% ) कुपोषित और 3598 बच्चे (लगभग 1%) गंभीर कुपोषण के शिकार पाए गये। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे -5 (जो कि 2020-21 में किया गया था) के अनुसार उत्तर प्रदेश में 28% बच्चे कुपोषित और लगभग 7% बच्चे गंभीर कुपोषित श्रेणी के अंतर्गत है। इस दृष्टि से देखा जाए तो जनपद वाराणसी में बच्चों का कुपोषण का स्तर राज्य औसत से काफी कम है।

इस अवसर पर नियमित टीकाकरण का महत्व बताते हुए जिला प्रतिरक्षण अधिकारी डा. वीएस राय ने कहा कि बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए जरूरी है कि उनका सम्पूर्ण टीकाकरण अवश्य कराया जाए। टीका बच्चों को कई जानलेवा बीमारियों से सुरक्षा प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि हर गर्भवती को कोशिश करनी चाहिए कि उसका संस्थागत प्रसव ही हो। इसका बड़ा फायदा गर्भवती के साथ ही बच्चे को भी मिलता है। उन्होंने कहा कि महिला के गर्भवती होने का पता चलते ही उसका समय से टीकाकरण कराते रहना चाहिए।

अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. एके मौर्य ने कहा कि जन्म के पहले घंटे में बच्चे को मां का पीला गाढ़ा दूध पिलाना अमृत समान होता है। इसे बच्चे का पहला टीका भी माना जाता है क्योंकि यह बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता को जीवनभर के लिए मजबूत कर देता है। उन्होंने कहा कि कुछ महिलाओं की यह शिकायत अक्सर ही आती है कि उन्हें दूध नहीं हो रहा, जबकि यह सिर्फ एक भ्रम है। उन्होंने कहा कि बच्चे को हर दो घंटे पर मां का दूध पिलाना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने बच्चे को स्तनपान करने के सही तरीके की जानकारी दी। साथ ही बताया कि दूध पिलाते समय मां को यह ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे की गर्दन मुड़ी न हो। गर्दन मुड़ी रहने से बच्चा दूध ठीक से नहीं पी सकेगा।

बाल विकास परियोजना अधिकारी (सीडीपीओ) स्वाति पाठक ने कहा कि बच्चे को जन्म के छह माह तक सिर्फ स्तनपान कराना चाहिए, बाहर का कुछ भी नहीं देना चाहिए, नही तो इससे संक्रमण का खतरा रहता है। इसके अलावा छह माह के बाद बच्चे के समुचित शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए जरूरी होता है कि बच्चे को मां के दूध के साथ ऊपरी आहार देना चाहिए।

कार्यशाला में पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) प्रभारी डा. सौरभ सिंह ने कुपोषित बच्चों के उपचार की जिले में सुविधाओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी। इसके साथ ही बताया कि एनआरसी केन्द्र में कुपोषित बच्चों को 14 दिनों तक रख कर किस तरह उनका निःशुल्क उपचार किया जाता है। इस दौरान बच्चे की तो चिकित्सा की ही जाती है उसके मां को आहार भत्ता भी दिया जाता है ताकि मां और शिशु दोनों स्वस्थ रहें। यूनीसेफ के मण्डल समन्वयक अंजनी राय ने कुपोषित व अति कुपोषित बच्चों के बारे में जानकारी दी। सुपरवाइजर उषा गौतम, लालिमा पाण्डेय के साथ ही आंगनबाड़ी कार्यकर्ता पुष्पा रानी ने जमीनी स्तर पर कार्य के दौरान प्राप्त अपने अनुभवों को साझा किया। कार्यशाला में मीडिया के सवालों का जवाब जिला कार्यक्रम अधिकारी व अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने दिया।

कार्यशाला में चिकित्सा अधिकारी डा. अतुल सिंह, जिला स्वास्थ्य शिक्षा एवं सूचना अधिकारी हरिवंस यादव, एनआरसी प्रभारी डा. सौरभ सिंह, सीडीपीओ काशी विद्यापीठ स्वाति पाठक, सीडीपीओ आराजीलाइन अंजू चौरसिया, यूनीसेफ के मण्डल समन्वयक अंजनी राय और सीफार के प्रतिनिधि शामिल रहे।


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