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गणतंत्र दिवस काशी पत्रकार संघ ने विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर के लिए ध्वस्तीकरण का किया समर्थन

सुरेश प्रताप (वरिष्ठ पत्रकार)

 27/Jan/19

वरिष्ठ पत्रकार सुरेश प्रताप सिंह ने संघ के अध्यक्ष सुभाष व महामंत्री अत्री के चाटूकारिता का किया विरोध गणतंत्र दिवस के अवसर पर काशी पत्रकार संघ के तत्वावधान में पराड़कर भवन के सभागार में आयोजित खेल पुरस्कार और सांस्कृतिक कार्यक्रम में काशी पत्रकार संघ और प्रेस क्लब के पदाधिकारियों ने समवेत स्वर में सार्वजनिक तौर पर यह मुहर लगाते हुए ऐलान कर दिया कि पक्काप्पा यानी पक्कामहाल में विश्वनाथ मंदिर काॅरिडोर और गंगा पाथवे के लिए घर और मंदिर तोड़ने का जो अभियान चलाया गया वह उचित और ठीक था. मंच पर बैठे समारोह के मुख्य अतिथि काशी विश्वनाथ मंदिर काॅरिडोर के सीईओ इससे काफी प्रसन्न और गदगद दिखे. उनकी खुशी उनके चेहरे से साफ झलक रही थी. काशी पत्रकार संघ के अध्यक्ष सुभाष सिंह ने काशी पत्रकार संघ के इतिहास का जिक्र करते हुए कहा कि हमारी यह परम्परा रही है कि प्रत्येक "अच्छे कार्य" के पक्ष में हम खड़ा होते हैं. यह भी कहा कि काशी पत्रकार संघ की स्थापना आजादी से पूर्व तब हुई थी, जब देश में पत्रकारों का कोई संगठन नहीं था. लेकिन काशी पत्रकार संघ के अध्यक्ष यह बताना भूल गए कि जब देश गुलाम था, तब बनारस के पत्रकारों ने पत्रकारिता के कौन से मानक स्थापित किए थे. 1947 में आजादी मिलने के बाद भी बनारस की पत्रकारिता का तेवर क्या था ? और 1975 में जब देश में आपातकाल लागू हुआ तब यहां की पत्रकारिता का मापदंड क्या था ? रणभेरी बनारस से क्यों निकाली गई थी ? बनारस के महान पत्रकारों ने सत्ता की चाटुकारिता का मापदंड कभी भी स्थापित नहीं किया है. सच को सच और गलत को गलत कहने की हमारी महान परम्परा रही है. और यहां के पत्रकारों ने इस मापदंड की स्थापना के लिए उसकी कीमत भी चुकाई है. संघ के महामंत्री अत्रि भारद्वाज भी अपने अध्यक्ष के स्वर को सहलाते हुए गुणगान के गीत गा रहे थे. इतिहास के साथ छेड़छाड़ करने वालों के समक्ष बनारस की पत्रकारिता ने हमेशा सवाल खड़ा किया है और उसका पर्दाफाश किया है. हम सवाल पूछने का दम रखते है. यह रही है हमारे बनारस की महान पत्रकारिता की परम्परा ! लेकिन अफसोस अब हम सवाल पूछना भूल गए हैं. वर्तमान में बनारस की पत्रकारिता की जो "दशा और दिशा" है, उस पर लम्बी बहस चलाई जा सकती है. लेकिन ऐसा न करके हम अधकचरे इतिहास को बताकर लोगों को भुलावे में रखने और अपनी पीठ खुद थपथपाने का काम कर रहे हैं. जो बनारस की पत्रकारिता के लिए एक घातक प्रवृत्ति है. काशी की पत्रकारिता की एक महान परम्परा है. पहले उसे पढ़ो और फिर बोलो ! और कभी भी कुछ बोलने से पहले अच्छी तरह सोचो ! हमारे ऋषियों ने यही हमें शिक्षा और उपदेश दिया है. किस इतिहासकार या इतिहास की पुस्तक में यह लिखा है कि चंद्रगुप्त ने बनारस के पक्कामहाल में श्री चंद्रगुप्त महादेव मंदिर बनवाया था ? पक्कामहाल में जिनका घर ध्वस्त किया गया उन्हें अब मंदिर चोर कहा जा रहा है. वह भी खुलेआम डंके की चोट पर ! क्या मीडिया को यह सवाल नहीं पूछना चाहिए कि ऐसे कितने मंदिर चोरों के खिलाफ थाने में एफआईआर दर्ज कराई गई है ? और यदि नहीं दर्ज कराई गई तो क्यों ? कौन पूछेगा यह सवाल ? किसका है यह काम ? निश्चित तौर पर यह जिम्मेदारी मीडिया की बनती है. लेकिन वह अब यह काम करना भूल गई है. "घर में मंदिर और मंदिर में घर" की हमारी क्या संस्कृति और परम्परा रही है ? इसे बिना समझे किसी को हमें मंदिर चोर कहने का हक क्या है ? गली संस्कृति और जीवनशैली क्या है ? इसे मीडिया को बताना चाहिए ! लेकिन अफसोस कि यह काम न करके मीडिया अब खुलेआम अपने मंच से चाटुकारिता का अभिनय कर रही है. ऐसा नहीं है कि यों ही काशी पत्रकार संघ के पदाधिकारियों ने विश्वनाथ मंदिर काॅरिडोर के सीईओ को अपने गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि बना लिया था. यह एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है. और इसके पीछे संघ के पदाधिकारियों की क्या पाॅलिटिक्स है इसे वो अच्छी तरह समझते हैं. समारोह के दौरान मंच पर बैठे मुख्य अतिथि और पदाधिकारियों के चेहरे पर आ-जा रहे भाव और उनके वक्तव्य में इसकी झलक साफ दिखाई दे रही थी. काशी पत्रकार संघ की महान परम्परा का जिक्र करते हुए इसे किसी के कार्य को सही साबित कर उसे सर्टिफिकेट देने का मंच मत बनाओ ! यह गलत परम्परा है. हमारा यह इतिहास नहीं है. सवाल पूछना हमारी परम्परा थी, है और रहेगी ! इसे बनाए रखो ! पराड़कर भवन से लगभग एक फर्लांग की दूरी पर पक्कामहाल में पिछले दस माह के अंदर सुंदरीकरण के नाम पर दो सौ से अधिक घर और मंदिर ध्वस्त कर दिए गए और यह कार्य अभी भी हो रहा है. क्या इस परिप्रेक्ष्य में कभी काशी पत्रकार संघ ने अपनी पहल पर कोई संवाद, परिचर्चा या बहस कराई ? और नहीं तो क्यों ? क्या यह पत्रकार संघ की जिम्मेदारी नहीं बनती है कि सामाजिक सरकोर और अपने शहर में हो रहे इतने बड़े बदलाव को विमर्श के केन्द्र में लाए ? हम चाहे जितनी कोशिश और चालाकी कर लें अपनी जिम्मेदारियों से भाग नहीं सकते हैं. काशी पत्रकार संघ के पदाधिकारियों से इस परिप्रेक्ष्य में सवाल भी पूछे जाएंगे और उन पर अंगुली भी उठेगी. !! पुनश्चय : बनारस के पक्कामहाल का यह घर है, जिसे सुंदरीकरण के लिए ध्वस्त कर दिया गया है. मलवा विखरा पड़ा है. और इसके बगल में जो गली दिखाई दे रही है, उधर हरे रंग का पर्दा डाल कर उसे ढका गया है ताकि गली से आने-जाने वाले लोग इसे देख न सकें.


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