रामनाथी (गोवा) - लाखों कश्मीरी हिन्दुओं को विस्थापित हुए लगभग 3 दशक बीत गए हैं । अतः, समाज के सब वर्गों को विशेषतः निर्वासित कश्मीरी हिन्दुओं को कश्मीर में बुलाकर उनका पुनर्वास कराने के लिए निम्नांकित 3 सूत्रों पर कार्य किया जाए, तभी देशांतर्गत सामाजिक संघर्ष टलेगा -
1. 1990 के दशक में लाखों कश्मीरी हिन्दू ‘धार्मिक द्वेष’ और ‘वंशविच्छेद’ की बलि चढे । इसलिए निर्वासन हुआ, यह सत्य जब तक नहीं स्वीकारा जाता, तब तक कश्मीरी हिन्दुओं को कश्मीर घाटी में बुलाकर से उनके पुनर्वास का कार्य नहीं हो पाएगा । ‘कश्मीरी हिन्दुओं को वापस बुलाकर उनका पुनर्वास करना’, इस प्रश्न पर अन्य किसी भी मार्ग से समाधान नहीं निकल सकता । किंबहुना वह कृति हिन्दुओं के दुर्दैवी वंशविच्छेद को अस्वीकार करने समान ही है । वंशविच्छेद का वास्तव न मानने पर, यह समस्या देश में कभी भी और कहीं भी उत्पन्न हो सकती है, इस बात को ध्यान में रखना होगा ।
2. कश्मीर घाटी में हिन्दुओं का वंशविच्छेद हुआ है’, यह सत्य मानकर ऐसा वंशविच्छेद पुनः न हो, इसके लिए कठोर कानून बनाकर उनका क्रियान्वयन किया जाना चाहिए । इसी प्रकार, कश्मीरी हिन्दुओं को न्याय दिलाने के लिए प्राधिकरण की भी स्थापना होनी चाहिए ।
3. कश्मीरी हिन्दुओं के पुनर्वास के लिए कश्मीर का एक भू-भाग चुनकर उसका नाम ‘पनून कश्मीर’ (हमारा काश्मीर) रखें । पश्चात,उस राज्य को केंद्रशासित प्रदेश घोषित कर, वहां भारतीय संविधान द्वारा पारित किए कानून लागू करें । ऐसा होने पर ही कश्मीरी हिन्दुओं को आधार मिलेगा और उनका स्थायी पुनर्वास होगा’ यह विचार, ‘यूथ फॉर पनून कश्मीर’ के राष्ट्रीय संयोजक श्री. राहुल कौल ने यहां व्यक्त किया ।
‘अष्टम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन’ के निमित्त यहां विद्याधिराज सभागार में 1 जून को आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन को श्री. कौल संबोधित कर रहे थे । इस सम्मेलन में ‘यूथ फॉर पनून कश्मीर’ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री. रोहित भट, चेन्नई के ‘टेंपल वर्शिपर्स सोसाइटी’ के अध्यक्ष श्री. टी.आर. रमेश और हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदे भी उपस्थित थे ।
इस समय श्री. रोहित भट ने कहा, ‘‘बंगाल में आज जो स्थिति निर्माण हुई है, वैसी ही स्थिति 20 वर्ष पूर्व कश्मीर में थी । इसलिए हिन्दुओं को सतर्क रहकर समय रहते ही उचित समाधान योजना बनानी होगी, अन्यथा हिन्दुओं की स्थिति और बिगड जाएगी ।’’
हिन्दू मंदिरों का असंवैधानिक सरकारीकरण रद्द किया जाए ! - टी.आर. रमेश
‘भारतीय संविधान ने अपनी धारा 25 के माध्यम से देश के हिन्दुओं के साथ-साथ’ अन्य सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार प्रदान किया है तथा कहा है कि धारा 29 (1) के अनुसार धार्मिक समुदायों के मौलिक सांस्कृतिक, धार्मिक एवं प्रशासकीय अधिकारों के विषय में कोई सरकार धर्म के आधार पर पक्षपात नहीं करे अथवा उनपर रोक न लगाए ।’ इसलिए, ये धार्मिक अधिकार केवल अल्पसंख्यकों के लिए हैं, यह मानना गलत है’, यह विचार टी.आर. रमेश ने प्रस्तुत किया ।
पत्रकारों के समक्ष ‘हिन्दू मंदिरों को सरकारीकरण से मुक्त करने’ के विषय में रमेशजी ने आगे कहा, ‘‘भारत की अनेक राज्य सरकारों ने केवल हिन्दू हिन्दुओं और उनके धार्मिक न्यासों की संपत्ति अमर्यादित काल के लिए नियंत्रण में ले ली है । भारत के विविध राज्य शासनों के ये पुराने नियम हिन्दू नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर प्रहार है । हम मांग करते हैं कि जिन राज्य सरकारों ने अपने-अपने राज्य के जिन हिन्दू हिन्दुओं को (मंदिरों आदि को) नियंत्रण में लिया है, वे उन्हें उनके स्वामियों अथवा संप्रदाय के प्रमुख अधिकारी को तुरंत लौटा दें । शासन अपने राज्य के धार्मिक न्यास कानून में उचित परिवर्तन करे तथा इस कानून के अनुसार इतना ही देखे कि ‘सब धार्मिक संस्थाएं ठीक ढंग से कार्य कर रही हैं अथवा नहीं । इसके आगे सरकारें ऐसी हिन्दुओं को अपने नियंत्रण में लेकर संविधान का अनादर न करें ।’’
‘कश्मीरी हिन्दुओं के विस्थापन को 29 वर्ष बीत चुके हैं । उनके पुनर्वास के लिए नवनिर्वाचित केंद्र सरकार अब तो कार्यवाही करे । ‘पनून कश्मीर’ स्थापित होने तक हम कश्मीरी हिन्दुओं के साथ रहेंगे । आज धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हिन्दुओं को विद्यालयों में धर्मशिक्षा नहीं दी जाती । वेदपाठशालाओं को अनुदान नहीं मिलता । दूसरी ओर, धर्म को अफीम की गोली माननेवाले साम्यवादी केरल के हिन्दू मंदिरों को नियंत्रण में लेकर उनका संचालन कर रहे हैं । मंदिरों के असंवैधानिक सरकारीकरण के विरुद्ध आज सभी हिन्दुत्वनिष्ठ संगठन एकत्र आकर संघर्ष कर रहे हैं ।’, यह विचार हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदे ने इस अवसर पर व्यक्त किया ।