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काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कला संकाय प्रेक्षागृह में दो दिवसीय 'रामायण कॉन्क्लेव' का आयोजन



 04/Feb/23

अयोध्या शोध संस्थान, अयोध्या, पर्यटन एवं संस्कृति विभाग, उत्तर प्रदेश द्वारा जन जन के राम विषय पर उत्तर प्रदेश के 16 जिलों में प्रस्तावित 'रामायण कॉन्क्लेव' के आयोजन के क्रम में चित्रकूट के बाद द्वितीय पड़ाव के रूप में वाराणसी में भारत अध्ययन केंद्र के सहयोग से काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कला संकाय प्रेक्षागृह में द्विदिवसीय 'रामायण कॉन्क्लेव' का आयोजन किया गया। आयोजित उद्घाटन सत्र में 'लोकचेतना में श्रीराम' विषय पर मुख्यातिथि के रूप में बोलते हुए श्रीहनुमत निवास पीठाधीश्वर, अयोध्या आचार्य मिथिलेश नन्दनी शरण ने कहा कि राम सृष्टि की समस्त चेतना में व्याप्त हैं। कण-कण में व्याप्त राम को प्रमाणित करने के लिए हमें किसी साक्ष्य की आवश्यकता नही हैं। प्रभु राम लोकमानस में प्रतिष्ठित हैं। जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त प्रत्येक व्यवहार में भगवान् राम प्रेरक तत्त्व के रूप में हमारे बीच उपस्थित हैं।

विशिष्ट अतिथि के रूप में प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्त्व विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. विभा त्रिपाठी ने कहा कि लोक में राम की व्याप्ति सर्वाधिक है। उन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में जो प्रतिमान स्थापित किये हैं। हमें उनका अनुसरण करना चाहिए। अध्यक्षीय उद्बोधन में संगीत नाटक अकादमी, उत्तर प्रदेश के पूर्व अध्यक्ष प्रो. राजेश्वर आचार्य ने लोक में प्रचलित राम की उपस्थिति को अनेक लोकप्रचलित उक्तियों के माध्यम से रूपायित किया। उन्होंने कहा कि जीवन के अन्तिम पड़ाव में भी व्यक्ति राममय होकर ही जीवन से जाता है। भगवान् शिव भी काशी में आत्माओं को राम शब्द के सहारे ही मुक्त करते हैं। कॉन्क्लेव के प्रथम अकादमिक सत्र 'रामकथा का साहित्यिक और आध्यात्मिक संदर्भ' विषय पर बोलते हुए श्री रामानुज संस्कृत महाविद्यालय, वाराणसी के पूर्व प्राचार्य डॉ. परमेश्वर दत्त शुक्ल ने रामचरित की व्यापकता पर बात की तथा कहा कि भगवान् राम का चरित हमें जीवन में किसी न किसी रूप में उपस्थित दिखाई देता है। भारत अध्ययन केन्द्र के समन्वयक प्रो. सदाशिव कुमार द्विवेदी ने भारतीय साहित्य, संस्कृत साहित्य तथा सम्पूर्ण विश्व साहित्य में रामकथा तथा उसकी व्यापकता पर विचार प्रस्तुत किया। परवर्ती कवियों ने औचित्य के अनुसार रामकथा को बदला। सीता-परित्याग सभी को स्वीकार नहीं है। हिन्दी विभाग के आचार्य प्रो. प्रभाकर सिंह ने फादर कामिल बुल्के के रामकथा पर किये गये कार्य का उल्लेख करते हुए हिन्दी साहित्य में उपस्थित राम तथा उसके विविध संदर्भों पर बात की। इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केन्द्र की पूर्व शोध समन्वयक प्रो. उषा शुक्ला ने राम और सीता को शक्ति और शक्तिमान की दृष्टि से एक माना और उसके महत्त्वपूर्ण आध्यात्मिक पक्ष को सामने रखा वहीं सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. राजाराम शुक्ल ने वाल्मीकि द्वारा किये गये सीतापहरण वृतान्त को परवर्ती परम्परा में कवियों ने अस्वीकार किया क्योंकि उनको रावण द्वारा माता का स्पर्श किया जाना स्वीकार नही था ।

अतिथियों का स्वागत भारत अध्ययन केन्द्र के समन्वयक, प्रो. सदाशिव द्विवेदी ने, अतिथियों का सम्मान क्षेत्रीय पुरातत्त्व अधिकारी वाराणसी डॉ. सुभाष चन्द्र यादव ने, धन्यवाद ज्ञापन अयोध्या शोध संस्थान के निदेशक डॉ. लवकुश द्विवेदी ने तथा संचालन डॉ. अमित कुमार पाण्डेय ने किया।

इस कार्यक्रम में रामायण तथा उसके विविध पक्षों पर आधारित क्विज प्रतियोगिता में वाराणसी जिले के 25 विद्यालयों के कुल 300 छात्रों ने प्रतिभाग किया जिसमें 50 विजेता रहे। जबकि सांस्कृतिक कार्यक्रम में 10 विद्यालयों के 125 छात्रों ने प्रतिभाग किया। सांस्कृतिक कार्यक्रम का संयोजन अदिति गुलाटी ने तथा संचालन डॉ. ज्योति सिंह ने किया। क्विज प्रतियोगिता संचालन क्विज मास्टर श्री निर्मल जोशी ने किया।

सायंकाल सांस्कृतिक संध्या में भरतनाट्यम् शैली में रामाय तुभ्यं नमः शीर्षक से पद्मश्री डॉ. गीता चन्द्रन ने नृत्य प्रस्तुत किया।


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