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शिक्षक पहले भी राष्ट्र निर्माता था आज भी है इसलिए आप शिक्षकों की जिम्मेदारी और महत्तवपूर्ण हो जाती : प्रो. डीपी सिंह



 01/Apr/23

एजुकेशन फार ऑल, क्वालिटी एजुकेशन फार ऑल

वाराणसी। आईयूसीटीइ (इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर टीचर एजुकेशन) संस्था में आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार 'शैक्षिक जगत के समक्ष उच्च शिक्षा में उभरती चुनौतियां' विषय पर आयोजित दो दिवसीय कार्यक्रम के समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में पधारे यूजीसी के पूर्व चेयरमैन, बीएचयू के पूर्व कुलपति तथा वर्तमान में माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शिक्षा सलाहकार डॉ. डीपी सिंह रहे। प्रो. डीपी सिंह द्वारा समापन समारोह में बोलते हुए सभी का अभिनंदन किया गया। उन्होंने कहा कि पूर्व राष्ट्रपति का इस सेमिनार में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होना अपने आप में गरिमापूर्ण है। टीचर एजुकेशन में जो कुछ सोचा जा सकता वो सब इस संस्था का उद्देश्य है। कितना लंबा और कितना ऊँचा आप सोच सकते ये सब इस संस्था के उद्देश्य में शामिल है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 पर भी उन्होंने समारोह में बात करते हुए वैश्विक नागरिक की बात की। शिक्षक की सोच, उसका अपनापन, उसकी दूरदृष्टि ही हमें वैश्विक नागरिक व वैश्विक जिम्मेदारी के लिए तैयार कर सकती। अपनी जड़ों से जुड़ते रहकर, भारतीय दृष्टि के साथ विश्व में मौजूद चुनौतियों का सामना करें। समावेशी शिक्षा की बात उन्होंने की। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में अंकित पांच पिलर पर हमें मजबूती से काम करना होगा ये सबकी सामुहिक जिम्मेदारी है चाहे कुलपति हों, प्रोफेसर हों, सभी को मिलकर जिम्मेदारी का निर्वहन करना होता।

शिक्षक को पहले स्वतः जो अच्छा है उसको समझना होगा तभी वो विद्यार्थी को अच्छा ज्ञान दे सकता। चुनौतियाँ बहुत आयेंगी पर सभी को अपने बुद्धि, विवेक, बुद्धिमानी से हल निकालना होगा। विद्यार्थियों में विवेक की भावना कैसे जागृत हो इस पर सोचना व जागृत कराना शिक्षक का काम है। शिक्षक के ऊपर सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। आध्यात्मिकता के गूढ़ रहस्यों को समझने के लिये योग, प्राणायाम का सहारा लेना होगा। उन्होंने मुख्यमंत्री के उद्देश्य कि विद्यार्थियों को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा दी जाये तभी हम उनके में चरित्र निर्माण, संस्कार, उनके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास कर सकते ताकि राष्ट्र निर्माण में उनकी प्रमुख भूमिका हो सके और प्रदेश के विकास में भी सहयोगी बन सकें।

कार्यक्रम में वैल्यू एजुकेशन की बात की जिसमें उन्होंने कहा कि मूल्य शिक्षा व्यक्तियों के व्यक्तित्व विकास पर जोर देती है ताकि उनका भविष्य संवर सके और कठिन परिस्थितियों से आसानी से निपटा जा सके। यह बच्चों को ढालता है, ताकि वे अपने सामाजिक, नैतिक और लोकतांत्रिक कर्तव्यों को कुशलतापूर्वक संभालते हुए बदलते वातावरण से जुड़ जाएं। वैल्यू एजुकेशन की महत्ता शारीरिक और भावनात्मक पहलुओं को विकसित करता है। यह आपको ढंग सिखाता है और भाईचारे की भावना विकसित करता है। यह देशभक्ति की भावना पैदा करता है। मूल्य शिक्षा धार्मिक सहिष्णुता को भी विकसित करता है।

शिक्षक पहले भी राष्ट्र निर्माता था आज भी है इसलिए आप शिक्षकों की जिम्मेदारी और महत्तवपूर्ण हो जाती। मानव जीवन जो मिला है हमें उसे सार्थक बनाना होगा ताकि हमारे बाद समाज हमें आदर्श रूप में याद करे। उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति डॉ कलाम के साथ अपने पुराने स्मरण भी सुनाये तथा कहा कि विद्यार्थियों को ऊँचे सपने देखते हुए कड़ी मेहनत करनी चाहिए। अंत में उन्होंने कहा कि 'एजुकेशन फार ऑल, क्वालिटी एजुकेशन फार ऑल' की बात की।

समापन समारोह में सम्मानित अतिथि के रुप में पधारे प्रो. राजेंद्र सिंह रज्जू भैया राज्य विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अखिलेश कुमार सिंह तथा एमिटी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. पी बी शर्मा द्वारा उच्च शिक्षा के समक्ष मौजूद चुनौतियों पर बात रखी गयी।

कार्यक्रम की शुरूआत में मुख्य अतिथि द्वारा दीप प्रज्वलन करते हुए माँ वाग्देवी की प्रतिमा पर माल्यार्पण करते हुए पंडित मदन मोहन मालवीय जी को नमन किया गया। समारोह में अतिथियों का स्वागत आईयूसीटीइ (इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर टीचर एजुकेशन) के चेयरमैन डॉ पी एन सिंह द्वारा करते हुए संस्था के बारे जानकारी रखी गयी। सेमिनार की कन्वेनर दीप्ति गुप्ता द्वारा रिपोर्ट कार्ड प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम का संचालन कुशाग्री सिंह द्वारा किया गया। अंत में सौरभ सिंह राठौर द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया।


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