काशी एवं रामेश्वरम का सांस्कृतिक संबंध अत्यंत प्राचीन है: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ
काशी तमिल संगमम उत्तर और दक्षिण की महान परंपराओं को जोड़ने वाला एक सेतु है : केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान
सांस्कृतिक एकता का पर्व: काशी तमिल संगमम 3.0 का भव्य शुभारंभ
काशी तमिल संगमम 3.0: भारतीय संस्कृति की अद्वितीय विरासत का उत्सव: डॉ. एल मुरुगन
#KashiTamilSangamam वाराणसी, 15 फरवरी 2025: वाराणसी के पवित्र नमो घाट पर शनिवार को काशी तमिल संगमम 3.0 का भव्य शुभारंभ हुआ। इस अवसर पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, और केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण एवं संसदीय कार्य राज्य मंत्री डॉ. एल. मुरुगन मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।
काशी तमिल संगमम का यह तीसरा संस्करण 15 फरवरी से 24 फरवरी तक चलेगा। इस संगमम का उद्देश्य उत्तर और दक्षिण भारत की प्राचीन सांस्कृतिक विरासत को और अधिक सशक्त करना और दोनों क्षेत्रों के बीच ऐतिहासिक संबंधों को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाना है। इस अवसर पर विभिन्न सांस्कृतिक, शैक्षिक और पारंपरिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। जिसमें बड़ी संख्या में विद्वानों, छात्रों, किसानों, कलाकारों और तमिलनाडु एवं उत्तर भारत के श्रद्धालुओं का भाग लिया जाना संभावित है।
काशी तमिल संगमम के उद्घाटन कार्यक्रम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने संबोधन में कहा, प्रधानमंत्री के एक भारत श्रेष्ठ भारत संकल्पना को मूर्त रूप देने वाला यह कार्यक्रम अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने आदि शंकराचार्य का उल्लेख करते हुए कहा कि जिस प्रकार से प्राचीन समय में उन्होंने दक्षिण से चलते हुए समूचे भारत को सांस्कृतिक रूप से एकीकृत किया। वर्तमान में उत्तर और दक्षिण को जोड़ने का ठीक वहीं काम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर रहे हैं। पिछले दो संस्करण का आयोजन कार्तिक मास में हुआ था। किंतु इस वर्ष का आयोजन इसलिए ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि इस वर्ष 144 वर्षों के पश्चात प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन हुआ है। लिहाजा इस वर्ष का काशी तमिल संगमम दक्षिण से जितने भी श्रद्धालु काशी में आएंगे, वह काशी की विरासत और सांस्कृतिक विविधता का अवलोकन के पश्चात दुनिया का सबसे बड़ा सांस्कृतिक और आध्यात्मिक समागम महाकुंभ का भी दर्शन करेंगे तथा गंगा यमुना एवं सरस्वती के पावन धारा त्रिवेणी संगम में आस्था की डुबकी लगाएंगे। तत्पश्चात पांच सौ सालों के बाद अयोध्या में भगवान राम लला के प्राण प्रतिष्ठा के दर्शन का भी लाभ लेंगे। मुख्यमंत्री ने बताया कि इस वर्ष की थीम 4 S है यानी सेंट, साइंटिस्ट, सोशल रिफॉर्मर तथा स्टूडेंट पर आधारित है। उन्होंने कहा कि हमारे ऋषि मुनि भारतीय सांस्कृतिक एकता में महत्वपूर्ण योगदान दिए हैं। दूसरा साइंटिस्ट यानी वैज्ञानिक हमारे भारत की तरक्की में वैज्ञानिकों के अमूल्य योगदान रहा है। तीसरा समाज सुधारक की प्रदर्शनी और उनका रूपांतरण वर्तमा दर्शकों को बेहद प्रभावित करेगा तथा चौथा यश फॉर स्टूडेंट यानी छात्र, भारतीय के विकास के लिए विद्यार्थियों का सशक्त एवं शिक्षित होना बेहद जरूरी है। उन्होंने काशी तमिल संगम को भारत की सांस्कृतिक जुड़ाव का एक सशक्त माध्यम बतलाया। उन्होंने ऋषि अगस्त के पौराणिक महत्व को उद्धृत करते हुए कहा कि उन्होंने भगवान राम को आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ पढ़ाया। अगस्त्य मुनि के काशी में कई मंदिर हैं। उन्होंने कहा कि काशी सांस्कृतिक विविधता का अनुपम उदाहरण है। उन्होंने लोगों से कहा कि यहां काशी विश्वनाथ मंदिर, काल भैरव, विशालाक्षी मंदिर, अन्नपूर्णा मंदिर, हनुमान घाट इत्यादि दर्शनीय स्थल हैं जो तमिल संस्कृति से संबद्ध हैं। उन्होंने कहा कि द्वितीय राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुवात काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में यहीं काशी से किया। उन्होंने प्राचीन भाषा तमिल और संस्कृत की समरूपता का भी उल्लेख किया। उन्होंने तमिलनाडु से आए सभी मेहमानों का काशी और उत्तर प्रदेश की ओर से स्वागत किया।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने इस पहल को "एक भारत, श्रेष्ठ भारत" की भावना को साकार करने वाला बताया। उन्होंने कहा, "यह आयोजन न केवल सांस्कृतिक समरसता को बढ़ावा देता है, बल्कि शिक्षा, भाषा और परंपराओं को भी एक मंच प्रदान करता है।" उन्होंने विश्वास जताया कि यह संबंध आने वाली पीढ़ियों तक बना रहेगा। शिक्षा मंत्री ने काशी तमिल संगमम के तीसरे चरण का उद्घाटन करते हुए कहा कि सांस्कृतिक एकता ही हमारे देश की कुंजी है और यह संगमम भौगोलिक दूरियों को समाप्त करने एवं आपसी समझ को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
नमो घाट पर आयोजित कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री ने कहा कि 2047 तक भारत को विकसित बनाने की प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की घोषणा को अपनी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करते हुए मूर्त रुप देना है। उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम में आए अतिथियों को इस बार बाबा विश्वनाथ दर्शन, महाकुंभ मेला तथा अयोध्या स्थित राममंदिर में दर्शन करने को मिलेगा। श्री प्रधान ने अपने संबोधन में महाकुंभ का जिक्र करते हुए कहा कि महाकुंभ ने केवल भारतीय अपितु पूरी दुनिया के सनातनियों में नयी ऊर्जा का संचार किया है। उन्होंने कहा कि संस्कृत की तरह तमिल भी देश की सबसे पुरानी भाषा हैं। जो सांस्कृतिक एकता दिखाने की सबसे बड़ी मिसाल है। तमिलनाडु में कोई ऐसा मंदिर नहीं है, जिसमें श्री काशी विश्वनाथ महादेव नहीं विराजते। इस बार के केंद्रीय बजट में पहली बार प्रावधान किया है कि एसआई के माध्यम से देश की महान ग्रन्थों को संरक्षित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि तमिल के पांड्या साम्राज्य द्वारा काशी के बारे में प्राचीन धर्म ग्रंथों में उल्लिखित शब्द एक भारत-श्रेष्ठ भारत की अवधारणा को चरितार्थ करता है। उन्होंने बताया कि इस बार छह ग्रुप में तमिलनाडु से अतिथियों का आगमन होगा। जिनको काशी, प्रयाग तथा अयोध्या की संस्कृति से रूबरू होने का मौका मिलेगा। इस बार तमिल समागम अगस्त्य ऋषि पर पूरी तरह फोकस रहेगा। जिनकी जन्म जयंती को सरकार राष्ट्रीय सिद्ध दिवस के रूप में मनाती है। उन्होंने बजट में उल्लेखित नेशनल डिजिटल लाइब्रेरी तथा 22 भाषाओं के डिजिटल कुम्भ के बारे में भी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि शिक्षा मंत्रालय के तत्वावधान में आयोजित काशी तमिल संगमम 3.0 आने वाले दिनों में विभिन्न सांस्कृतिक प्रस्तुतियों, व्याख्यानों, सेमिनारों और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के कार्यक्रमों का साक्षी बनेगा। यह आयोजन भारतीय संस्कृति की अद्वितीयता को प्रदर्शित करने और देश की एकता को मजबूत करने का कार्य करेगा। उन्होंने प्रधानमंत्री के पंच प्रण को पुनः दोहराते हुए 2047 तक विकसित भारत की बात कही तथा "राष्ट्रीय हित ही हमारी हित है" को दोहराया।
वहीं, इस अवसर पर केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण तथा संसदीय कार्य राज्य मंत्री डॉ. एल. मुरुगन ने कहा, "काशी और तमिल सभ्यता का अटूट रिश्ता है। यह आयोजन हमारी साझा विरासत को जीवंत करने का अवसर प्रदान करता है। यह संगमम प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के एक भारत श्रेष्ठ भारत के सपने को साकार कर रहा है।
काशी तमिल संगमम समारोह में तमिलनाडु के विभिन्न लोक कलाकारों द्वारा सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दी गईं। इस अवसर पर राज्य सरकार के मंत्री रविंद्र जायसवाल, दया शंकर मिश्रा दयालु, सचिव शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार शिक्षा सचिव विनीत जोशी, अपर सचिव उच्च शिक्षा मंत्रालय सुनील कुमार बरनवाल, ईआईटी मद्रास के निदेशक प्रो. सी. कामाकोटी, आईआईटी बीएचयू के निदेशक प्रो. अमित पांडा, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. संजय कुमार तथा भारतीय भाषा समिति के अध्यक्ष चमू कृष्ण शास्त्री उपस्थित रहे।