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काशी में बसता है 'मिनी तमिलनाडु'



 17/Feb/25

काशी में सबसे अधिक दक्षिण भारतीय पर्यटक आते हैं। यहां के हनुमान घाट, केदार घाट, हरिश्चंद्र सहित कई ऐसे मुहल्ले हैं, जो काशी में दक्षिण भारत की गाथा समेटे हुए हैं। तमिलनाडु के महाकवि सुब्रमण्यम भारती भी लम्बे समय तक इन मुहल्लों में रहकर पढ़ाई कर चुके हैं और उन्होंने ही सबसे पहले काशी और तमिल को जोड़ने का पहल किया था। उन्होंने अपने पुस्तक में लिखा था "करेंगे हम कुछ ऐसे उपाय, जिससे कांची में बैठे-बैठे, हम सुन सकें वाराणसी के शास्त्रार्थो को। कर्नाटक के खरे सोने के उपहारों के साथ, हम करेंगे अभिनंदन राजस्थान के वीरों का। अपने होंठों पर भारत देश का नाम लेकर। आओ उतार फेंके हम अपने भय व गरीबी को।" इसी पंक्ति को ध्यान में रखकर काशी में तमिल संगमम का शुभारंभ हुआ। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 'एक भारत, श्रेष्ठ भारत' की परिकल्पना को केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की पहल से आज काशी तमिल संगमम 3.0 भी शुरू हो गया है।

काशी के पं. घनपाठी ने बताया कि काशी प्रयाग और गया का विशेष महत्व मानते हैं दक्षिण भारतीय उन्होंने एक श्लोक पड़ते हुए कहा प्रयागे मुंडं, काशी दंडं, गया पिंडं...की मान्यता के वशीभूत आदिकाल से ही ही शिव के सुख साधन रहित आनंदकी तलाश में काशी पहुंचने वाले शैव तमिलों की एक सतत धारा रही है। महीनों-वर्षों पैदल चलकर भगवान शिव की नगरी में देव ऋण से उत्तीर्ण होने की कामना से यहां पहुंचे तमिल समुदाय ने हनुमानघाट, केदारघाट और हरिश्चंद्र घाट के क्षेत्रों के मध्य काशी के बीचो-बीच एक लघु तमिलनाडु बसा दिया। तमिल समुदाय के वैदिक विद्वान व तीर्थ पुरोहित कर्मकांडी, श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के सदस्य पं. वेंकट रमण घनपाठी बताते हैं कि जीवन में कम से कम एक बार काशी की धार्मिक यात्रा करना प्रत्येक तमिल के जीवन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक लक्ष्य होता है।

प्राचीन तमिल ग्रंथों में उत्तर भारत के तीन तीर्थ नगरों प्रयागराज, काशी व गया की महत्ता बताते हुए कहा गया है कि प्रयागराज में आत्मऋण, काशी में देवऋण व गया में पितृऋण से मुक्ति मिलती है तथा मृत्यु के पश्चात आत्मा को बैकुंठ लोक में वास या मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस धार्मिक प्रक्रिया को मुंडन व वेणीदान कहा जाता है। इसके पश्चात काशी पहुंचकर सभी यहां काशीवास करते हैं काशी में यह धार्मिक यात्रा कम से कम पांच दिनों की होती है। इस दौरान लोग बाबा विश्वनाथ व माता विशालाक्षी का दर्शन-पूजन करते हैं।

इसके पश्चात दो दिना नौका में सवार होकर गंगा पूजन कर, गंगा के पांच घाटों पर अस्सी, दशाश्वमेध, पंचगंगा, मणिकर्णिका व वुरुणा पर स्नान कर अपने पितरों की आत्मा की शांति व मोक्ष के लिए तर्पण-अर्पण करते हैं। इसके पश्चात माता अन्नपूर्णा का दर्शन कर अन्न-धन आदि का दान-पुण्य करते हैँ। गया पहुंचकर भी पिंडदान कर पूर्वजों की आत्मा के मोक्ष के लिए प्रार्थना करते हैं। इन सबमें काशी की यात्रा देव ऋण से उऋण होने के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।


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