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काशी विश्वनाथ मंदिर में रंगभरी एकादशी पर शोभायात्रा की अनुमति नहीं मिलने से वाराणसी में भक्‍तों के बीच हड़कंप, मूर्ति ढककर लाने का भी अब तक नहीं मिला जवाब



 12/Mar/25

वाराणसी : काशी बाबा विश्‍वनाथ की नगरी में वर्षों पुरानी परंपरा को इस बार बदल दिया गया।  पुरानी परंपरा के अनुसार काशी में रंगभरी एकादशी के दिन काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत के घर से काशी विश्वनाथ मंदिर तक शोभायात्रा के रूप में रजत प्रतिमाएं ले जाई जाती थीं, लेकिन इस बार शोभायात्रा को निकालने की इजाजत प्रशासन ने नहीं दी। बताते चलें कि दोपहर एक बजे से शोभायात्रा में शामिल होने के लिए काशी के लोग बड़ी संख्या में इसमें आते थे। साल में एक बार इस रजत प्रतिमा के ऊपर रंग गुलाल डाल कर बनारसी होली खेलते थे। पालकी में बैठ कर मां गौरा बाबा विश्वनाथ के साथ काशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह तक ले जाई जाती थीं और एक रात गर्भ गृह में रहने के बाद अगले दिन इन प्रतिमाओं को फिर महंत आवास वापस लाया जाता था, लेकिन इस बार प्रशासन ने पहले तो शोभायात्रा निकालने की इजाजत नहीं दी, फिर जब बनारसी लोगों ने इसका प्रतिकार सोशल मीडिया से लेकर अन्य माध्यमों में शुरू किया, तो प्रशासन बैकफुट पर आ गया। इस अचानक हुए बदलाव के बाद काशी के प्रबुद्ध लोगों के विरोध को देखते हुए बाद में अचानक रंगभरी एकादशी के दिन समय से पूर्व ही रजत प्रतिमाओं को ढक कर महंत आवास से मंदिर परिसर तक लाया गया। इस बात पर अब राजनीतिक दलों ने भी निशाना साध रहे हैं। इसे काशी की परम्परा तोड़ने वाला और अपमानित करने वाला कृत्य बता रहे हैं। वहीं, दूसरी ओर मंदिर प्रशासन ने सफाई दी कि प्रतिमाएं ढकी हुई क्यों थीं, इसका जवाब महंत परिवार ही दे सकता है। मंदिर प्रशासन ने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के तहत परम्परा का निर्वाह करने की तैयारी कर ली है और परम्परा नहीं टूटेगी। आनन-फानन में रंगभरी एकादशी के दिन सुबह इन चल रजत प्रतिमाओं को ढक कर मंदिर परिसर तक पहुंचाया गया।

इस मुद्दे पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। अजय राय ने कहा कि शासन सत्ता के मद में चूर मंदिर प्रशासन ने काशी की 300 वर्षों की परंपरा को खंडित कर बनारसियों का अपमान किया है। 300 वर्षों से महंत जी के घर से गौना करा कर बाबा विश्वनाथ मां गौरा को लेकर अपने घर ले जाते थे। इसमें आम बनारसी भी शामिल होते थे, लेकिन इस बार प्रशासन ने चोरों की तरह कपड़े से ढक कर प्रतिमाओं को समय से पहले ही ले गए। काशी के लोग साल भर इस क्षण का इंतज़ार करते थे, लेकिन शासन के इशारे पर सनातनी परम्पराओं को खंडित और अपमानित करने का काम यहां के प्रशासनिक अधिकारी कर रहे हैं।

इस पूरे प्रकरण के बारे में जब मीडिया के लोगों ने मंदिर प्रशासन से बात करनी चाही तो काशी विश्वनाथ मंदिर के एसडीएम शंभु शरण ने कहा कि गौना की परंपरा खंडित नहीं हुई है। रंगभरी एकादशी के दिन अपने निर्धारित समय से कार्यक्रम तय है। कार्यक्रम अपने निर्धारित समय दोपहर एक बजे से शुरू हो गया। मंदिर परिसर के बाहर प्रतिमाएं ढक कर क्यों और किन परिस्थितयों में लाई गई हैं, इसका सही जवाब महंत परिवार के लोग ही दे सकते हैं। रंगभरी एकादशी की परम्पराएं विधिवत मंदिर परिसर में पूरी की जा रही हैं।


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