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अत्याचार के विरोध मे शस्त्र चलाने वाले पहले योद्धा थे बाबा परशुराम : डॉ० परशुराम सिंह

हरिशंकर तिवारी
संवाददाता चन्दौली
 29/Apr/25

सनातन संस्कृति रक्षा धर्म के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ० परशुराम सिंह ने अपने आवास पर परशुराम जयंती नही मनाने का बहुत बड़ा दुःख व्यक्त करते हुए कहा कि मैं प्रत्येक वर्ष बाबा परशुराम जी कि जयंती समारोह आयोजित करता हूं लेकिन शायद इस वर्ष बाबा को हमारा सेवा स्वीकार नहीं था, जिसके पुर्व हमारे कनिष्ठ पिता चाचा जी का गोलोकवास हो गया। जिसके वजह से मैं अपने आराध्य देव श्री बाबा परशुराम की पुजन कीर्तन-भजन नहीं कर सका। उन्होंने बाबा परशुराम के उपर प्रकाश डाला उन्होंने बताया कि बाबा परशुराम विष्णु के छठे अंश यानी अवतार के रूप मे जाने जाते है। बाबा का जन्म त्रेता युग के प्रथम चरण में हुआ था। जिनके पिता ऋषि जमदग्नि थे । उनका बचपन का नाम राम था वे भगवान शिव के अनन्य भक्त थे उनका शस्त्र परशु यानी फरसा था जिसके कारण भगवान शिव ने उनके नाम के आगे परशु लगा दिया जिससे उनका नाम परशुराम हुआ। वे पिता के बहुत बड़े भक्त थे।

लोगों का कहाँ है कि बाबा परशुराम ने अपने माता की हत्या कर दी थी दरअसल वे हत्या नहीं करी थी  पूरी कहानी समझिए क्योंकि हमारे समाज में कुछ लोग आधी अधूरी बात बताकर लोगों को भ्रमित करने का काम करते हैं। परशुराम जी के पिता ऋषि जमदग्नि एक बार उनकी मां रेणुका पर क्रोधित हुए हो गये थे पुराने जमाने में लोग समय से चलते थे, नियमों का पालन करते थे और अगर कुछ गलती होती थी तो बहुत बुरा माना जाता था। बस फिर क्या था, ऋषि जमदग्नि ने परशुराम जी को आदेश दिया कि वे रेणुका को मार दें.. अपने पिता की बात का सम्मान करने के लिए परशुराम जी ने मजबूरन अपनी ही मां का सिर काट दिए। जमदग्नि परशुराम जी की इस पितृ भक्ति से प्रसन्न हुए और उन्होंने परशुराम जी से वरदान मांगने को कहा, वरदान के रूप में परशुराम जी ने ऋषि जमदग्नि से कहा कि वे मां रेणुका को पहले जैसा कर दें। ऋषि जमदग्नि ने तुरंत अपनी योगिक शक्तियों से रेणुका को जीवनदान दे दिया।

आरम्भिक शिक्षा महर्षि विश्वामित्र एवं ऋचीक के आश्रम में प्राप्त होने के साथ ही महर्षि ऋचीक से शारंग नामक दिव्य वैष्णव धनुष और ब्रह्मर्षि कश्यप से विधिवत अविनाशी वैष्णव मंत्र प्राप्त हुआ।  कैलाश पर स्थित भगवान शंकर के आश्रम में विद्या प्राप्त कर विशिष्ट दिव्यास्त्र  परशु प्राप्त किया। शिवजी से उन्हें श्रीकृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच,स्तोत्र एवं मंत्र कल्पतरु भी प्राप्त हुए।

बाबा परशुराम ने क्षत्रियों का संहार कर २१ बार पृथ्वी को क्षत्रियविहीन कर दिया था। वे धरती पर वैदिक संस्कृति का प्रचार-प्रसार करना चाहते थे। कहा जाता है कि भारत के अधिकांश ग्राम उन्हीं के द्वारा बसाये गये। जिसमे कोंकण, गोवा एवं केरल का समावेश है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान परशुराम ने तीर चला कर गुजरात से लेकर केरला तक समुद्र को पिछे धकेल ते हुए नई भूमि का निर्माण किया। और इसी कारण कोंकण, गोवा और केरला मे भगवान परशुराम वंदनीय है। वे भार्गव गोत्र की सबसे आज्ञाकारी सन्तानों में से एक थे, जो सदैव अपने गुरुजनों और माता पिता की आज्ञा का पालन करते थे। वे सदा बड़ों का सम्मान करते थे और कभी भी उनकी अवहेलना नहीं करते थे। उनका भाव इस जीव सृष्टि को इसके प्राकृतिक सौंदर्य सहित जीवन्त बनाये रखना था। वे चाहते थे कि यह सारी सृष्टि पशु पक्षियों, वृक्षों, फल फूल और समूची प्रकृति के लिए जीवन्त रहे। उनका कहना था कि राजा का धर्म वैदिक जीवन का प्रसार करना है ना कि अपनी प्रजा से आज्ञापालन करवाना। वे एक ब्राह्मण के रूप में जन्में अवश्य थे लेकिन कर्म से एक क्षत्रिय थे। उन्हें भार्गव के नाम से भी जाने जाते है।


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